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व्रत कथा कोष
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धूप दहन दश प्रारति पान, सिंहपीठ प्रादिक पहचान । इत्यादिक उपकरण मंगाय, भक्ति भावजुत भव्य चढ़ाय ।। दाम प्रहार आदि च उ देय, कुण्डी श्रुत भी भेंट करेय । यथायोग्य मुनि को दे दान, इत्यादिक उद्यापन जान ।। जो ना इतनी शक्ति लगार, थोरे ही कीजे हितकार । जो न सर्वथा घर में होय, तो दूनों व्रत कीजे सोय ।। पुनि व्रत जो करिये मन लाय, जो सुरमोक्ष सुथानकदाय ॥
दोहा शाकपिण्ड के दान ते, रतनवष्टि हूं राय । यहां द्रव्य लागो कहां, भावनिको अधिकाय ।। तातें भक्ति उपाय के, स्वातमहित मन लाय । व्रत कीजे जिनवर कहो, यों सुनि करि तब राय ॥
चौपाई द्विजकन्या को भूप बुलाय, व्रत सुगन्धदशमी बतलाय । राय सहाय थकी व्रत करयो, पूरब पापबन्ध परिहयो ।। उद्यापन कर मन वच काय, और सुनो प्रागे मन लाय । एक कनकपुर जानों सार, नाम कनकप्रभ तसु भूपार ।। नारि कनकमाला अभिराम, राजसेठ जिनदत्त सुनाम । जाके जिनदत्ता वर नार, तिहि ताके लीनों अवतार ।। तिलकमती नाना, गुण भरो, रूप सुगन्ध महासुन्दरी । कोई इक पाप उदयपुनि प्राय, प्राण तजे वाकी तब माय ।। जननी बिन दुःख पावे बाल, और सुनो श्रेणिक भूपाल । जिनदत्त यौवनमय था जब, अपनो ब्याह विचारो तबै ।। भोजन करि चाले मुनिराय, मारग मांहि गहल अति प्राय । परयो भूमि पर तब मुनिराज, कीयो श्रावक देखि इलाज ॥ तैठे एक जिनालय सार, तहाँ ले गये किया उपचार । फेरि सकल ऐसे वच कह्यो, रानी खोटो भोजन दयो ।