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प्रत कथा कोष
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के साथ लड़ाई के लिए भेजा, प्रद्य म्न ने सबको हराकर राजा को भी युद्ध में जिंदा पकड़ लिया । नारदजी वहां पहुच गये, कालसंवर राजा को छुड़ाकर प्रद्युम्नकुमार को द्वारिका नगरी में ले आये । पुत्र-प्रागमन को सुनकर कृष्ण और रुकमणी बहुत ही खुश हुए, द्वारिका नगरी में उत्सव मनाया गया, सब ही सुखी हुए । विशेष जानकारी के लिए प्रद्य म्न चरित्र पढ़ें। इस प्रकार राजा कृष्ण और रानी रुकमणी सुख से द्वारिका नगरी में सुख भोगने लगे।
___ एक दिन गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ तीर्थंकर का समवशरण आया, कृष्ण अपने समस्त प्रजाजन सहित सर्व परिवार को लेकर समवशरण में पहुंचा, भगवान को साष्टांग नमस्कार करके मनुष्यों के कोठे में बैठ गया, कुछ समय उपदेश सुनकर रुकमणी हाथ जोड़ विनयपूर्वक गणधर भगवान को कहने लगी कि हे भगवान ! मैंने कौनसा ऐसा पुण्य किया था जिससे कि मुझे ऐसा अखण्ड सौभाग्य मिला है ?
तब गणधर भगवान कहने लगे कि इस भरत क्षेत्र के मगध देश में लक्ष्मी ग्राम नाम का एक गांव है, उस गांव में सोमसेना नाम का ब्राह्मण लक्ष्मीमती स्त्री के साथ रहता था।
एक दिन अपने रूप-सौन्दर्य के अभिमान में चूर होकर दर्पण में मुख देख रहो थी, वहां समाधिगुप्त नाम के महामुनि चर्या के निमित्त उसके घर के सामने से जा रहे थे, उनको देख कर लक्ष्मीमति ने मुनिराज की बहुत ही निन्दा की, उसके फल से लक्ष्मीमति को भयंकर भगंदर रोग उत्पन्न हो गया, और मरकर भैंस, कुत्ता, सुकर, गधा हुई, वहां से छठे नरक में उत्पन्न होकर महान दुःख भोगने लगी, नरक से निकलकर नर्मदा नदी के तट पर एक गांव में नीचकुलोत्पन्न हुई।
वहां उसके मां बाप मर गये, अन्य लोगों ने उसका पालन पोषण किया, वह भीख मांगकर अपना पेट भरने लगी, एक दिन नर्मदा नदी के तीर पर महामुनिराज रात्रियोग धारण कर बैठे थे, प्रातःकाल में वह लड़की नदी पर गई, और मुनिराज को देखकर संतुष्ट हुई, नमस्कार किया, मुनिराज के मुख से धर्मोपदेश सुनकर व्रत को ग्रहण किया, अन्त में मरकर कोंकण देश के शोभा नगर में नन्दन नाम का एक श्रेष्ठी रहता था, उसकी नन्दावती नाम की सेठानी थी, उस सेठानी के गर्भ से लक्ष्मीमति नाम की कन्या उत्पन्न हुई।