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व्रत कथा कोष
___ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं परमब्रह्मणे प्रतन्तज्ञान शक्तये प्रहत्परमेष्ठिने नमः स्वाहा ।
इस मंत्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, सहस्र नाम पढ़े, णमोकार मंत्र को १०८ बार जपे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में अर्घ्य लेकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य चढ़ा देवे, घर जाकर चतुर्विध संघ को दान देकर स्वयं पारणा करे, प्रतिदिन एकासन करे, पांचों ही दिन अणुव्रतों का पालन करते हुवे, धर्मध्यान से समय बितावे, अंतिम दिन में पंचामृताभिषक करके पंच पकवान चढ़ावे, पांचों दिन घी का अखण्ड दीप जलावे ।
इस व्रत को नव वर्ष करे, अथवा नव महिने करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय चंद्रप्रभु भगवान की प्रतिमा यक्षयक्षिणी सहित नवीन लाकर पंच कल्याणक प्रतिष्ठा करावे, चतुर्विध संघ को दान देवे ।
कथा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में रत्नपुर नाम का नगर है, उस नगर में एक बार प्रजापति राजा अपनी गुणवतो रानी के साथ सुख से राज्य करता था, उस राजा के चन्द्रशूल नाम का पुत्र था, और उस राजा का मन्त्री सुबुद्धि था, उसको भी एक पुत्र विजय नाम का था, एक समय आहार के लिए चारण ऋषिधारी महामुनी राजमहल में पधारे, राजा ने नवधाभक्तिपूर्वक आहार दान दिया, आहार होने के बाद मुनिराज ने राजपुत्र को और मन्त्री पुत्र को रामनवमी व्रत दिया और मुनिराज जंगल में तपस्या के लिए वापस चले गये । इधर दोनों ही व्रत को ग्रहण कर उन्मत्त हो गये और यौवन अवस्था में चूर होकर नगर की युवतियों का शील भ्रष्ट करने लगे।
नगरवासी प्रजा की यह दशा देखकर राजा इन दोनों के ऊपर बड़ा रुष्ट हुआ और दोनों कुमारों को पकड़वाकर शिरच्छेद करवाने का आदेश दे दिया, सेवक लोग उन दोनों को जंगल में ले गये, तब रास्ते में एक गुफा मिली । उस गुफा में एक मुनिराज के दर्शन कर दोनों जने उपशम भाव को प्राप्त हो गये, और दोनों ही ने उनसे मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। राजा को यह समाचार प्राप्त होते ही, जंगल में