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व्रत कथा कोष
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इधर उसके पति ने हंसद्वीप बहुत धन कमाया पर निकलते हुए वह राजा से मिलने के लिए गया, राजा ने उसका बहुत सम्मान किया । उसका रूप देखकर रानी ने उसे अपने महल में बुलाया । तब सुखानन्द ने रानी को हार भेंट में दिया, रानी को आनन्द हुआ । रानी ने भी उसका मान सम्मान कर बहुत ही वस्त्रालंकार भेंट किये । वह उसके ऊपर प्रासक्त हो गई और बोली आप जाओ नहीं, आनन्द से यहीं रहो, हम दोनों श्रानन्द से रहेंगे । यह सुनते ही सुखानन्द कांप गया उसने रानी को धिक्कार किया | रानी को गुस्सा आया । सुखानन्द वहां से निकलकर आ गया ।
रानी स्वभाव से ही दुष्ट थी । इसलिये वह राजा के पास आयी और कहने लगी राजा मेरी एक तकराल है । मैंने श्रेष्ठी को हार के लिए गजमोती खरीदने के लिए बुलाया था । पर उस दुष्ट ने मेरे पर बलात्कार करने का प्रयत्न किया परन्तु मैंने तुरन्त नौकरों को बुलाकर उसको निकलवा दिया ।
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राजा स्त्रीलम्पट था, उसने आगे-पीछे का विचार न करते हुये कहा - उसके हाथ-पैर बांध दो और सूली पर चढ़ा दो ।
मन्त्री भो वहां खड़े थे उन्होंने कहा "राजन ! आप न्यायी हैं, आप ऐसा अविचार मत करो क्योंकि यह व्यापारी है, लक्ष्मी उसके घर पानी भरती है, उसके साथ ५०० शूर सिपाही है वह ऐसा कृत्य करेगा नहीं अतः यदि आपने हाथ लगाया तो विकट संकट उत्पन्न होगा ।
तब राजा ने अपना विचार बदल दिया, उन्होंने उसको बुलाकर सब समाचार पूछे । श्रेष्ठी ने सब वृतांत कह सुनाया जिससे राजा को उन पर विश्वास हो गया । राजा ने उसको पुत्री को देना चाहा तब श्रेष्ठी ने कहा राजन् ! रानी मेरी मां है, तब मैं बहन से शादी कैसे करूंगा ! इससे राजा और अधिक प्रभावित हुआ । तब उसका सम्मान कर राजा ने विदाई दी ।
फिर कोई नई मुसीबत न आ जाये ऐसा सोच कर वह जल्दी ही निकल गया । वहां से वह उसी जंगल में आया जहां मनोरमा थी । वह उस जगह रुक गया और सारी सम्पत्ति नौकर द्वारा घर भेज दी व घर के सब समाचार लाने के लिए