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व्रत कथा कोष
किया जाता है । यदि व्रत की तिथि आगे पीछे के दिनों में होती है तो व्रत प्रागे-पीछे किया जाता है । यह व्रत चिन्तामणि रत्न के समान सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है | भगवान के दिन चिन्तामरिण भगवान् पार्श्वनाथ की पूजा विशेष रूप से की जाती है तथा “ॐ ह्रीं सर्वसिद्धिकराय पार्श्वनाथाय नमः " इस मन्त्र का जाप किया जाता है ।
सांवत्सरिक व्रत
सांवत्सरिकानि
नन्दीश्वर पंक्तिचारित्र्यशुद्धिदुःख हर रग सुखकर रणलक्षण
पंक्तिसिंहनिष्क्रीडितभद्रावसन्त त्रिलोकसार तस्कन्धविमान पंक्ति मुरज मध्य मृदंगमध्यशा-वात्सरिकानि कुंभश्रुतज्ञानद्वादशव्रतत्रिपञ्चाशत्क्रियाघातिक्षयादीनि
व्रतानि
भवन्ति ।
अर्थ :-- नदीश्वरपंक्ति, चारित्र्यशुद्धि, दुःखहरण, सुखकररण, लक्षणपंक्ति, सिंहनिष्क्रीडित, भद्रावसन्त, त्रिलोकसार, श्रुतस्कन्ध, विमानपंक्ति, मुरज मध्य मृदंग, मध्यशातकुम्भ, श्रुतज्ञान, द्वादशव्रत, त्रिपञ्चाशत् क्रिया एवं घातिक्षय आदि व्रत सांवत्सरिक व्रत कहे जाते हैं ।
नन्दीश्वर पंक्तौ षट्पञ्चाशदुपवासाः द्विपञ्चाशत्पाररणाः भवन्ति । इदं व्रतं वत्सरमध्ये मासत्रयमष्टादश दिनपर्यन्तं स्वशक्त्या करणीयम् ।
अर्थ :- नंदीश्वर पंक्ति व्रत में ५६ उपवास और ५२ पारणाएं होती हैं । वह व्रत एक वर्ष में तीन मास अठारह दिन तक अपनी शक्ति के अनुसार किया जाता है ।
विवेचन :-- नन्दीश्वरपंवित व्रत १०८ दिन में पूर्ण होता । इसमें पहले चार उपवास और चार पारणाएं की जाती हैं । पश्चात् एक बेला दो दिन का उपवास करने के अनन्तर पारणा करने का नियम है । तदुपरान्त एक उपवास, पश्चात् पारणा इस प्रकार १२ उपवास और १२ पारणाएं करनी पड़ती हैं । अनन्तर एक बेला करने उपरान्त पारणा की जाती है । इसके पश्चात् उपवास और पारणा इस क्रम से करते हुए १२ उपवास और १२ पारणाएं सम्पन्न की जाती हैं । पुनः एक बेला करने के अनन्तर पारणा की जाती है । तत्पश्चात् उपवास और पारणा के