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व्रत कथा कोष
उस बच्चे की ६ पर्वतों पर रहने वाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी ऐसी ६ कन्याओं ने प्रसूति गृह में सेवा की अर्थात् अंजन श्रादि लगाया । इसलिये इस व्रत का नाम षटकन्या व्रत है ।
पद्मप्रभु जिन बालक चन्द्रमा के समान बड़ा होने लगा । वह तरुण हो गया तब उनके पिता ने उनको राज्य भार सौंपकर संसार विषय से उदासीन होकर दीक्षा ली । जिससे उनकी सुगति हुई ।
पद्मप्रभु बहुत समय तक राज्य करके इस क्षणिक संसार से विरक्त हो गये । तब लोकान्ति देव ने प्राकर अनेक प्रकार का उपदेश दिया और स्तुति कर चले गये । तब पद्मप्रभु एक पालकी में बैठकर जंगल में गये, वहां पंचमुष्ठी केशलोंच करके दिगम्बरी दीक्षा ली । तपश्चर्या के प्रभाव से चार घातिया कर्मों का नाश करके केवल - ज्ञान को प्राप्त किया और अन्त में योग निरोध कर अघातिया कर्मों का नाश कर मोक्ष गये ।
षष्ठी व्रत
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श्रावण शुक्ला ६ के दिन उपवास करना । मनोकामना पूर्ण होने के लिये यह व्रत करते हैं । ये उपवास प्रोषधोपवास पूर्वक करना चाहिये । शुक्ल पंचमी को मन्दिर में जाकर नित्य नियम पूजा करनी चाहिये । भगवान नेमिनाथ की पूजा करनी चाहिये । बाद में भक्त महाकल्याण मन्दिर स्तोत्र का पाठ करना, पंचमी को एकाशन करके को उपवास करना, उस दिन भी पूरा दिन धर्मध्यानपूर्वक बिताये । णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिये । प्रात्मचिन्तन करना चाहिये । एकाशन के दिन कोई भी एक अन्न खाना चाहिये । यह व्रत १० वर्ष तक करना फिर उद्यापन करना चाहिये । यदि शक्ति नहीं है तो व्रत दूना करना चाहिये ।
षोडषकारण व्रत
यह व्रत वर्ष में तीन बार आता है । चैत्र, श्रावण और माघ, इन महिनों में वदि प्रतिपदा से एक महिना तक यह व्रत किया जाता है । इसमें एक दिन उपवास एक दिन एकाशन इस क्रम से करना चाहिये ।
दूसरी विधि :- भाद्रपद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को उपवास करके दूसरे