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व्रत कथा कोष
वगैरह क्रिया करनी चाहिए। फिर पूजा करनी चाहिये । हवन शान्ति विसर्जन करना चाहिए। उद्यापन में १६ घट पर १६ फल बाटना चाहिये । षोडशकारण यन्त्र, पूजनसामग्री, २५६ चांदी के स्वस्तिक, २५६ सुपारी, १६ शास्त्र, १६ श्रीफल, बर्तन, छत्र, चमर आदि मंगल द्रव्य दान करना चाहिए।
एक और विधि :--श्रावण वदि प्रतिपदा से क्रम से एक महिना भर उपवास करना या एक उपवास या एक एकाशन करना ।
-हस्त लिखित पोथी
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध नामक देश है, वहां की राजगृही राजधानी है । वहां राजा हेमप्रभ अपनी विजयावती रानी के साथ रहता था।
राजा का एक सेवक महाशर्मा, उसकी पत्नी प्रियंवदा थी। उसकी लड़की कालभैरवी बहुत हो कुरूप थी। उसको देखते ही सबको घृणा होती थी। एक बार चारण मुनि मतिसागर आकाश मार्ग से विहार करते हुये उस नगर में आये । महाशर्मा ने उन्हें नवधाभक्तिपूर्वक आहार दिया । मुनीमहाराज ने धर्मोपदेश दिया। तब महाशर्मा ने अपनी लड़की कुरूप क्यों है ऐसे प्रश्न पूछा तब महाराज बोले "इस उज्जयनी नगरी में राजा महीपाल अपनी पत्नी वेगवती रानी के साथ राज्य करता था, उनकी लड़की बहुत ही सुन्दर थी, उसे अपने रूप का घमण्ड था।
एक बार एक मुनि महाराज आहार लेकर उसके घर से निकले वह उसने देखा, उसने अच्छे बुरे का विचार न करते हुये महाराज के ऊपर थूक दिया, पर महाराज तो क्षमाधारी थे वे कुछ न बोलते हुये चले गये।
___ राजा ने व पुरोहित ने देखा, वे कन्या का उन्मत्तपणा देखकर उसके ऊपर गुस्सा हुए। उन्होंने मुनि महाराज के शरीर को प्रासुक पानी से पोंछ दिया जिससे राज कन्या लज्जित हुई। उसे अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ । वह मुनि महाराज के पास पायी और नमोस्तु कर अपने अपराध की क्षमा मांगी यही लड़की मरकर तेरे पेट से उत्पन्न हुई है । पूर्व का पाप कर्म का उदय है जिसे वह भोग रही है । इससे