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व्रत कथा कोष
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या धर्म प्रभावना करके धर्म में लगाना, शास्त्र-दान देना, संघों को निकालना, उन्हें पात्र वगैरह करवाना, प्रतिष्ठा आदि करवाना मार्ग प्रभावना है।
प्रवचन वात्सल्य :-संसारी जीवों की परस्पर सेवा करना, उनका उपकार करना, निष्कपटता से प्रेम करना, विशेषतः साधर्मियों से प्रेम करना, यही प्रवचन वात्सल्य है।
___ इन भावनाओं को शुद्ध मन से चिंतन व मनन करने से तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध होता है । इसलिये यह व्रत करते हुये उपरोक्त भावनाओं का चिन्तन करना इष्ट है।
षट्रसी व्रत दूध दही घृत तेल लूण मीठो सही, तजै पाख दोय दोय सकल संख्या कही। करे प्रसन इकबार व्रतो हम व्रत करे, पख बारह मरयाद षट्रसी व्रत गहै ।
-वर्धमान पुराण भावार्थ :-यह व्रत छह महिने में समाप्त होता है। प्रथम महीने में दूध का त्याग करे । दूसरे में दही, तीसरे में घृत, चौथे में तैल, पांचवें में लण, छठवें में में मीठा, इस प्रकार त्याग करें । 'प्रों ह्रीं वृषभादि वीतरान्तेभ्यो नमः' इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । छह महिने समाप्त होने पर उद्यापन करे ।
सर्वार्थसिद्धि व्रत कात्तिक सुदी अष्टमी से लगातार आठ दिन उपवास किये जाते हैं । तथा कात्तिक सुदी सप्तमी का एकाशन कर मार्गशीर्ष वदी प्रतिपदा को पुनः एकाशन करने का विधान है । इस व्रत में लगातार आठ दिन तक उपवास करना चाहिए। व्रत के दिनों में 'श्री सिद्धाय ममः' मन्त्र का जाप किया जाता है ।
सावधि व्रतों के भेद सावधीन्युच्यन्ते, तानि द्विविधानि, तिथि सावधिकानि दिन संख्या सावधि