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वर्स कपनको
ब्राह्मण के घर गया, उसकी विद्वत्ता वेद के ऊपर श्रुत उसका सौन्दर्य आदि देखकर उसका मन सन्तुष्ट हुआ तब शुभ मुहूर्त में कपिल के साथ अपनी लड़की सत्यभामा का विवाह किया | वहां श्रीषेण राजा ने भी उसका पाण्डित्य देखकर अपने दरबार में उसको श्राश्रय दिया।
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- एक बार सत्यभामा रजस्वला थी, कपिल उसके साथ भोग करना चाहता था, उसके इस दुराचार से सत्यभामा के मन में यह विचार आया कि यह कोई विजातीय है ऐसा सोचकर उसने उससे प्रेम करना छोड़ दिया । एक बार धरणीजड ब्राह्मण अतिशय दरिद्री हो गया जिससे वह कपिल के घर आया, कपिल ने अपने पिता की सबको पहचान करके दी ।
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एक दिन सत्यभामा ने धरणीजट को धन देकर एकान्त में सब बात पूछ ली और फिर सत्यभामा ने विचार करके श्रीषेण राजा के पास जाकर सबै समाचार उसे बता दिया । तब श्रीषण राजा ने सत्यभामा को अपने पास रखकर उस कपिल को नगर से बाहर निकाल दिया ।
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- एक दिन राजा शहर के बाहर वैमार पर्वत पर क्रीडा करने के लिये गया था, वहां पर आदित्य नामक महामुनि एक पेड़ के नीचे दिखाई दिये, राजा उनके पास गया वंदना की और आत्महित का प्रश्न पूछा तब मुनिराज ने यह आत्महित करने में असमर्थ है ऐसा सोचकर सत्पात्र को दान देने का उपदेश दिया ।
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एक दिन राजघराने में श्री अजितगति और प्रादित्यगति नामक दो चारण मुनि प्रहार के निमित से वहां श्राये । राजा ने नवधाभक्तिपूर्वक अपनी दोनों स्त्रियों सहित आहार दिया । तब राजा के घर पर पंचाश्चर्य वृष्टि हुई । इस दान क्रिया को देखकर सत्यभामा को बड़ा आश्चर्य हु,प्रा. 1
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सत्पात्र को दान देने से वे सब भोगभूमि में उत्पन्न हुये, श्रीषेण की पत्नी सिंहनंदिता तो उसी की पत्नी, हुई पर अनिदिता यह पुरुष बनी व सत्यभामा उसकी स्त्री हुई।
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वहाँ की आयु पूरी कर वे सोधर्मः स्वर्ग में उत्पन्न हुये । वहां से .. चयकर श्रीषेण का जीव तू प्रमिततेज है सिंहनंदा ने निदान किया था अतः त्रिपिष्ट नार