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व्रत कथा कोष
यण की पत्नी ज्योतिप्रभा हुई । प्रनिंदिता श्रीविजय नाम से उत्पन्न हुप्रा । सात्यकी ब्राह्मण की पुत्री सत्यभामा सुतारी हुई है । जिसको श्रीषेण राजा ने निकाल दिया था वह कपिल बहुत संसार परिभ्रमण कर निदान से प्रश्नघोष विद्याधर हुआ है, इसका मन सत्यभामा में रह गया था इसलिये अब वह पीछे लगा है । इस प्रकार अपने-अपने पूर्वभवों को सुनकर उन्हें वैराग्य हो गया । दीक्षा लेकर वे सब घोर तपश्चर्या करने लगे जिससे वे सब स्वर्ग में देव हुये और वहां की आयु पूर्ण करके मनुष्य बने और फिर वे मोक्ष गये ।
इधर प्रमिततेज व विजय दोनों ने श्राहारदान दिया था। दो चारण मुनि के पास गये । उनके दर्शन कर उनसे पूछा कि भगवान हमारी आयु कितनी बाकी रह गयी है ? उन्होंने बताया कि अब तुम्हारी आयु ३६ दिन शेष रही है तब वे घर गये और अपने पुत्रों को राज्य देकर उन्होंने अष्टान्हिका पर्व में व्रत का उद्यापन करके श्री अभिनंदन मुनि के पास दीक्षा ली । मरणपर्यन्त उपवास भी ले लिया जिससे वे मरकर देव हुये पर विजय ने निदान किया जिससे वे देव होकर अनंतवीर्य वासुदेव हुये । वहां से मरकर नरक गये । पर प्रमिततेज जो देव हुआ था वह मरकर बलदेव हुआ समय पाकर दीक्षा लेकर तपश्चर्या की जिससे वह फिर १६ वें स्वर्ग में प्रतिइन्द्र हुये । वहां से चयकर क्षेमंकर नामक चक्रवर्ति हुये । वहां पर बहुत दान पूजा की तथा वैराग्य धारण कर दीक्षा ली जिससे वे स्वर्ग में अहमिद्र हुये । वहां की आयु पूर्ण कर वह मेघरथ नामक राजा बना, वहां पर उन्होंने तीर्थंकर के पादमूल में १६ भावन की भावना भाई जिससे वे सर्वार्थसिद्धि में देव हुए। वहां से चयकर हस्तिनापुर में राजा विश्वसेन के यहाँ जन्म लिया, उनका नाम शान्तिनाथ था, कामदेव चक्रवर्ति व तीर्थंकर पदवी के धारी हुये, देवों ने उनके पांचों कल्याएक मनाये । केवलज्ञान प्राप्त कर धर्मोपदेश कर वे मोक्ष गये ।
श्रथ शतेन्द्रव्रत कथा
व्रत विधि :- आषाढ़ शुक्ल ८ के दिन उपवास करे, पूजा सामग्री हाथ में लेकर शुद्ध कपड़े पहन कर मन्दिर में जाये । पाटे पर चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा विराजमान करके पंचामृत अभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से अर्चना करे | पंच पकवान का नैवेद्य चढ़ावे ।