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व्रत कथा कोष
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दिया, उसके घर देवों ने पंचाश्चर्यवष्टि की, यह दृश्य देखकर सब नगर के लोग व राजपुत्र उसे देखने के लिये एकत्रित हुए। राजकुमार ने मुनिमहाराज को नमस्कार किया। उन्हें देखते ही राजकुमार का, मुनि से प्रेम व आदर जागा । इसलिये इसका कारण मुनि महाराज से पूछा, मुनिराज ने उसके पूर्व भव बताये, यह सुनकर कुमार विरक्त हुये। उन्होंने दीक्षा लेने का निश्चय किया । पर माता-पिता के प्रेम से क्षुल्लक दीक्षा ली और घर पर ही रहने लगे। घर पर भी नाना प्रकार के व्रत तथा बेला व्रत किये जिससे वे ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुए।
वहाँ की आयु पूर्णकर हस्तिनापुर के राजा के घर विद्यु च्चर नामक पुत्र हुप्रा । वह प्रतापी बलवान व सब विद्यानों में निपुण था, पर देवयोग से मित्रों की कुसंगति के कारण चोरी करने लगा। एक बार राज-दरबार में चोरी करते हुए कोतवाल ने उसे पकड़ लिया और राजा के पास लाये । राजा को उसे देखकर बुरा लगा, उन्होंने उसे उपदेश दिया पर उसके ऊपर इसका कुछ असर नहीं हुप्रा जिससे राजा ने उसे नगर के बाहर निकाल दिया।
वहां से निकलकर वह राजगृह में आया और एक वैश्या के घर रहने लगा । वह रोज चोरी कर वैश्या को धन देता था।
सागरचन्द्र के जीव ने स्वर्ग से च्यत होकर अग्नि वेश्यमान नामक धम्लि ब्राह्मण और उसकी स्त्री भद्रि के पेट से सुधर्म नाम से जन्म लिया। उन्होंने मुनि दीक्षा ली और भगवान महावीर के ५वें गणधर श्री सुधर्माचार्य हुये । वही मं हूं।
अर्हदास का एक सहोदर बंधु रुद्रदास था। वह पक्का जुपारी था। वह हमेशा जुआ खेलता था । उसकी सब सम्पत्ति जुए में चली गयो फिर वह उधार (कर्ज) लेकर भी खेलने लगा जिससे लोगों ने उसे बहुत ही मारा । यह अहंदास को ज्ञात हुप्रा तो उसने उसको णमोकार मन्त्र दिया, संन्यास मरण कराया जिससे वह मरकर यक्षदेव हुमा ये ही विद्य तवेग देव जम्बुकुमार हुमा, ऐसा यह आपका पूर्व भव है।
तब सबने सुधर्माचार्य के पास संसार से विरक्त होकर जिनदीक्षा ली। जम्बुस्वामी केवली बनकर मोक्ष गये। विद्युच्चर समाधिपूर्वक मरण साधकर सर्वार्थ