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व्रत कथा कोष
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परिचय दिया था। पर छोटेपन से ही उन्हें वैराग्य था। विद्या पूर्ण होते ही दीक्षा लूगा ऐसा उसने दृढ़ निश्चय किया था।
परन्तु माता-पिता के आग्रह से उन्होंने चार लड़कियों से शादो की । पर शादी के दूसरे दिन ही दीक्षा लेने के लिए निकले। उनकी पत्नियों ने उन्हें बहुत कथा कहकर समझाने का प्रयत्न किया। पर उनको यश मिला नहीं। उसी रात्रि विद्युच्चर चोर चोरी करने को उनके घर आया था। उसने यह संवाद सुना जिससे उसके मन पर भी परिणाम हुआ और उसने जिनमति माता से कहा कि मैं यदि इनको दीक्षा न लेने के लिये सहमत नहीं कर सका मैं भी इनके साथ दीक्षा ले लूगा । पर उसे विजय मिली नहीं जिससे उसने भी उनके साथ दीक्षा ले ली।
जम्बुकुमार, उनकी चार पत्नी, विद्युच्चर चोर आदि ने दीक्षा ली।
उन सब ने गौतम गणधर से विपुलाचल पर्वत पर दीक्षा ली, तब विद्युच्चर ने गौतम गणधर से पूछा कि हम सबने एक साथ दीक्षा ली इसका कारण क्या है ?
मुनि महाराज ने उत्तर दिया
'भव्यो !' मगध देश में वर्धमान नामक एक सुन्दर नगरी थी । उसका राजा महीपाल था । वह बड़ा ही धर्म धुरन्धर और नीति-निपुण था । उसके राज्य में एक ब्राह्मण रहता था । वह धर्म से मिथ्यात्वी था। उसके दो पुत्र थे, एक का नाम भावदेव व दूसरे का नाम भवदेव, वे विद्या में निपुण थे । पर वे भो मिथ्यात्वी थे।
वह ब्राह्मण मृत्यु को प्राप्त हुना, उनके लड़के सुख से दिन बिताने लगे पर वहां एक दिन गांव के बाहर एक मुनि महाराज आये। वे द्विजपुत्र नगर के लोगों के साथ दर्शन को गये, मुनि-सुख से धर्म-श्रवण कर भावदेव ने दीक्षा ले ली, गरु के साथ तपश्चरण करता हुआ वह बिहार करने लगा, बिहार करते-करते भावदेव संघ सहित उसी नगर में आये । उन्हें अपने छोटे भाई की याद आ गयी उसे मिथ्यात्व से छुड़ाने के लिए उन्होंने निश्चय किया । वे उनके घर गये ।
उस दिन भवदेव की शादी थी, लग्न की गड़बड़ थी। फिर भी उन्होंने संसार की अनित्यता का उपदेश दिया जिससे भवदेव ने अणुव्रत लिये और नवधाभक्ति से प्राहार दिया। आहार के बाद मुनि बाहर जाने के लिये निकले । तब भवदेव उनको