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व्रत कथा कोष
पूर्ण होने पर उद्यापन करे, व्रत के दिन शीलव्रत - चिंतन करना, धर्मध्यानपूर्वक दिन बिताये णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिए ।
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शतिकुम्भ व्रत
इस व्रत के उपवास को 'शराब्धी प्रमित' उपवास कहते हैं ।
इसका क्रम ५ उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, एक उपवास एक पारणा, फिर चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, एक उपवास एक पारणा, फिर चार उपवास एक पारण, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, एक उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पाररणा, एक उपवास एक पारणा ऐसे ४५ उपवास व १७ पार होते हैं । सब ५२ दिन का व्रत है । यह व्रत प्रखण्ड करना चाहिये ।
- गोविंदकविकृत व्रत निर्णय
शिवकुमार बेला व्रत
बेला अर्थात् दो उपवास करना । यह व्रत १२८ दिन में पूरा होता है इसमें मास पक्ष तिथि का नियम नहीं है कभी भी कर सकते हैं । इसका क्रम दो उपवास एक एकाशन इस प्रकार ३२ बेले करना एकाशन के दिन सिर्फ कांजिकाहार लेना व्रत के दिन अभिषेक पूजन करना चाहिये और उद्यापन करना चाहिये ।
दूसरी विधि - यह व्रत १६ महिनों में पूरा होता है इसमें ६४ बेला व ६४ पारणे हैं प्रत्येक महीने की सप्तमी, अष्टमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी इस प्रकार चार बेले करना और ४ पारणे इसलिये यह व्रत १६ महीनों में पूर्ण होता हैं ।
कथा
इस भरत क्षेत्र में मगध देश है उसकी राजधानी राजगृही। यहां पर राजा श्रेणिक राज्य करता था । वहीं पर एक सेठ अर्हदास रहता था वह राजश्रेष्ठी था । उनकी पत्नी जिनमति थी, वे दोनों धार्मिक थे । उनके पेट से जम्बुकुमार उत्पन्न हुए, न्तिम केवली थे । पूर्वभव के संस्कार के कारण छोटी उम्र में ही व्याकरण, न्याय, गायन वगैरह का अध्ययन कर लिया था । इसमें उन्होंने अद्वितीय बुद्धि का