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व्रत कथा कोष
कहा । नौकर ने आकर सारी हकीकत श्रेष्ठी को कह सुनायी । यह सुनकर उसके मन पर भारी आघात हुमा । उसने सब को घर जाने की प्राज्ञा दी व स्वतः मनोरमा की खोज करने को अकेला ही रह गया। घूमता-घूमता वह वाराणसी पाया, उधर मामा के घर मनोरमा से भेंट हुई । पति के आने से मनोरमा को आनन्द हुमा ।
____ इस प्रकार सुख से कई दिन निकल गये तब वह मनोरमा से कहने लगा चलो अब हम अपने घर जायेंगे यहां कितने दिन रहेंगे।
तब मनोरमा ने कहा मेरे पर ससुर ने शीलभंग का दोष लगाया है और मुझे घर से बाहर निकाला है । वह दूर नहीं होगा तब तक मैं घर कैसे जा सकती है।
उसकी यह बात सुनकर वह भी वहीं रहने लगा। एक दिन राजा ने सोचा कि श्रेष्ठी कब से धन कमाने गया है, वह अभी तक क्यों नहीं पाया, तब नौकरों ने मनोरमा की सब हकीकत बता दी।
___तब राजा ने महीपाल को बुलाया और उससे कहा कि सही बात क्या है वह मुझे बताओ, यदि नहीं बताया तो तुम्हें सजा होगी, तब महीपाल ने कहा मुझे तो पूरी बात मालूम नहीं है पर आपकी दासी के कहने पर उसकी सास ने मनोरमा पर आरोप लगा कर निकाल दिया है। तब राजा ने दासी को बुलाया और कहा सच्ची बात क्या हुई है यह बतायो । दासी घबरा गयी सच बताती हूँ तो राजकुमार की मुसीबत और वह ऐसा सोच हो रही थी कि राजा ने कहा सच बतायो नहीं तो तुम्हें सूली पर चढ़ाऊंगा।
तब मरने के भय से दासी ने सच्ची बात राजा को बता दी । तब यह बात सुनकर राजा व महीपाल को आश्चर्य हुआ। राजा ने राजकुमार को बुलाकर उसको राज्य से बाहर निकाल दिया। महीपाल भी आकर अपनी पत्नी को बोला कि तेरे कहने पर मैंने निर्दोष मनोरमा को घर से बाहर निकाल दिया है । महीपाल बहुत विलाप करने लगा और कहने लगा यदि मैने मनोरमा को ढूढ़ा नहीं तो राजा मुझे शिक्षा (दण्ड) दिये बिना रहेगा नहीं ऐसा सोचकर वह देश विदेशों में ढूढने निकला। घूमते-घूमते वह बनारस में पाया धन दत्त के घर उसकी भेंट हुई । सुख