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व्रत कथा कोष
राजा वीतशोक को वैराग्य हो गया था जिससे उसने थोड़े ही दिन में अशोक को राज्यभार सौंपकर जिनदीक्षा ली और बहुत कठिन तपश्चर्या करके मोक्ष गये ।
रोहिणी को आठ पुत्र व चार पुत्री उत्पन्न हये, एक दिन राजा रोहिणी के साथ बैठा था और दासी लोकपाल को अपनी गोद में लेकर खेल रही थी। तब एक
औरत अपने बालों को बिखराये हुये छाती पीटते हुये बच्चे को मारते हुये रोते हुए जा रहा था। तब राना नं "यह क्या है एसा प्रश्न पूछा । मर्ने नाटक में रास क्रीड़ा लोकनृत्य, लोक-गीत ये सब देखा । पर ऐसा नहीं देखा । यह नाटक का कौनसा प्रकार है ?"
दासी ने उत्तर दिया 'राणी, यह दुःख का प्रदर्शन है ।' रानी को दुःख की जानकारी नहीं थी। उसने दुःख क्या होता है ? ऐसा पूछा क्योंकि वह अपने जीवन में कभी भी दुःखी नहीं हुई थी । ऐसा बार-बार पूछने पर दासी गुस्से से बोली
___"क्या बाई तुम्हारा पांडित्य ! तुम्हें ऐश्वर्य सुख का गर्व चढ़ा है । इतनी आपकी उम्र गई पर अभी तक आपको दुःख की कल्पना नहीं है आश्चर्य है।"
रोहिणी को खराब लगा पर फिर भी शान्त भाव से उसने फिर कहा-गुस्सा मत करो, मैने बहुत सी कलाएँ सीखीं पर अभी तक ऐसी कला मैंने नहीं सीखी।
तब दासी ने कहा "यह नाटक नहीं, गायन नहीं है, यह तो उसके लाडले भाई की मृत्यु का रुदन है। इसलिये मैंने इसे शोक कहा । रोना कैसे आता है ऐसा उस रानी ने फिर पूछा, तब राजा वहीं बैठा था, उसने यह संवाद सुना तो उसने कहा रोना कैसे आता है ? और क्यों प्राता है ? और दुःख किसे कहते हैं ? यह मैं तुझे बताता हूँ ऐसा कहकर उसका पुत्र लोकपाल जो दासी की गोद में खेल रहा था उसे उठाकर नीचे फेंक दिया ।
लोकपाल जोर से नीचे गिरा पर पुण्योदय से नीचे पुष्पों की शैया थी, उसके ऊपर वह गिरा । यह गोष्ट नगर देवता को मालुम हुयी वे एकत्रित होकर रोने लगे फिर भी रानी को उसकी कल्पना नहीं हुई। दुःख का उसे अनुभव नहीं पाया