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व्रत कथा कोष
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इस भरतक्षेत्र में जम्बूद्वीप नामक कुरुजाङ्गल देश है, उसमें हस्तिनापुर नामक एक नगरी है, उसमें विगतशोक नामक राजा राज्य करता था, उसका पुत्र अशोक सदगुणी था ।
इस द्वीप में अंगदेश में चंपानगरी का राजा मघवा उसकी राणी श्रीमती थी । उसके आठ लड़के थे और एक पुत्री थी, उसका नाम रोहिणी था । रोहिणी नक्षत्र के समान ही रूपवान थी ।
कार्तिक महिने को बात है कि अष्टान्हिका पर्व शुरू था । उसका उस दिन उपवास था, पूजा के लिये वह मन्दिर में गयी और भक्तिभाव से पूजा करके साधुनों को नमस्कार किया और अपने पिताजी के पास आयी । पूजा का प्रसाद सबको दिया । उसका रूप देखकर उसके पिताजी को विचार आया ।
इतनी सुन्दर लड़की किसके पल्ले जायेगी इसके योग्यतानुसार वर मिलेगा कि नहीं। इसी चिंता से ग्रस्त उसने मंत्रियों को बुलाया और कहा अपनी रोहिणी बड़ी हो गयी है इसलिए उसकी योग्यता अनुसार हमें उसका पति ढूंढ़ना चाहिए । इसलिये आप लोग ढूंडो और किसको देनी यह निश्चित करो ।
तब उनमें से एक मन्त्री बोला राजन् पूर्वापर पद्धति से प्राप स्वयंवर रचो क्योंकि स्वयंवर में उसे जो पसन्द प्राये उसे वह अपना पति वरेगी । राजा को यह बात पसन्द आयी । उन्होंने स्वयंवर मंडप की रचना की व सब राजाओं को आमन्त्रित किया । सब राजकुमार स्वयंवर मंडप में प्राये सबका ध्यान रोहिणी की ओर था वे सब चाहते थे कि रोहिणी हमें वरे । रोहिणी अपने दिव्य अंलकार पहनकर स्वयंवर मंडप में आयी । उसके हाथ में पंचवर्णी पुष्पों का हार था उसके रूप को देखकर सब राजकुमार मोहित हो गये । रोहिणी की दासी सभी राजाओं का परिचय बताती हुई आगे बढ़ी । रोहिणी ने वीतशोक राजा के पुत्र अशोक के गले में माला डाली । सब राजकुमार अपने-अपने घर चले गये । थोड़े दिनों के बाद रोहिणी की शादी अशोक के साथ हो गई । वे दोनों वहीं रह कर सुख भोखने लगे । वहां पर वीतशोक राजा के बहुत ही पत्र अशोक के पास आये, पर वह वहां गया नहीं । तब राजा ने कड़क पत्र लिखा जिससे दोनों वीतशोक राजा के पास पहुंचे ।