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व्रत कथा कोष
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ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं चतुर्विशति तीर्थकरेभ्यो नमः स्वाहा
१०८ पुष्प लेकर इस मंत्र से जाप्य करे, १०८ बार णमोकार मंत्र का जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, जिनवाणी की पूजा करे, गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की पूजा सम्मान करे, अंत में एक महाप्रर्घ करके हाथ में अर्घ को लेकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, इस प्रकार कार्तिक महिने की पूर्णिमा पर्यंत प्रतिदिन लगातार पूजा करना चाहिये, अष्टमी उपवास, पंचमी और चतुर्दशी को एकभुक्ति करनी चाहिये, । शेष दिनों में भोजन करना व ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिये।
इस प्रकार चार महिने तक पर्वकाल पालना चाहिये, अंत में व्रत का उद्यापन करे, एक नवोन पंचपरमेष्ठि की प्रतिमा स्थापन करके पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करना, नाना प्रकार का नैवेद्य, मिष्टान्न तैयार करके पंचपरमेष्ठि, जिनवाणी, गुरु, यक्षयक्षिणी (पद्मावति) को अर्पण करना, यथाशक्ति ध्यानाध्ययन करना चाहिये, गुरुषों को वैयावत आहारदानादिक देवे, अनेक प्रकार का फल, मेवा, मिठाई डालकर वायना तैयार करे, एक वायना देव, एक गुरु, एक शास्त्र को भेंट करके एक कथा पढ़ने वाले को और एक स्वयं लेकर घर आवे, इस प्रकार व्रत की विधि है ।
कथा
इस जम्बद्वीप के भरत क्षेत्र में आर्य खंड है, वहां काश्मीर देश है, उस देश में हस्तिनापुर नाम का एक गांव है, उस गांव में जिनमित्र नाम का एक वैश्य रहता था, उस वैश्य की स्त्री का नाम जिननंदी था. वैश्य को सुमति नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई वह कन्या रूप-सौन्दर्य से रहित थी, इसलिये उसके साथ कोई भी विवाह करने को तैयार नहीं था, वैश्य को रात दिन इसी बात की चिन्ता रहती थी।
एक दिन मासोपवासी यशोधर नाम के मनिराज पारणा के लिये नगर में आये, घूमते-घूमते सेठ जिनमित्र के घर पर आये, जिन मित्र ने नवधाभक्ति पूर्वक मुनिराज को आहार दिया, आहार होने के बाद एक पाटे पर मुनिराज को स्थापन कर हाथ जोड़ नमस्कार करके कहने लगा कि हे गुरुदेव ! मेरी यह कन्या रूप-सौन्दर्य से रहित क्यों उत्पन्न हुई, इससे कोई विवाह करने को तैयार नहीं है, इस दुःख