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व्रत कथा कोष
स्वाहा ।
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व्रत को ग्रहण किया, सब क्रमशः स्वर्ग में देव उत्पन्न हुई ।
शिवरात्री व्रत कथा
माघकृष्णा चतुर्दशी के दिन व्रतिक स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारणकर पूजाभिषेक का द्रव्य लेकर जिन मन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर आदिनाथ तोर्थंकर की प्रतिमा गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी देवी सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, इस प्रकार दिन में चार बार अभिषेक पूजा करे, पंचपकवान का नैवेद्य बनाकर चढ़ावे |
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथाय गोमुखयक्ष चक्र ेश्वरी देवी सहिताय नमः
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, सहस्रनाम पढ़े, श्री प्रादिनाथ चरित्र पढ़े, बाद में जिनवाणी और गुरु की पूजा करे, यक्षर्याक्ष व क्षेत्रपाल की भी पूजा करे ।
एक थाली में चौदह पान लगाकर ऊपर अर्घ्य रखे, एक श्रीफल रखे, अर्ध्य की थाली हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, सत्पात्रों को प्राहारदान देवे, रात्रि में देशभक्ति व पंचस्तोत्रादि पढ़कर स्वाध्याय करे, रात्रि जागरण करे प्रातः उपरोक्त पूजा करके सत्पात्र को दान देकर, स्वयं पाररमा करे । इस प्रकार व्रत पूजा पांच वर्ष करके अन्त में उद्यापन करे, उद्यापन के समय आदि तीर्थंकर की एक यक्षयक्षि सहित नवीन प्रतिमा लाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे, चतुविध संघ को प्राहारादि दान देवे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में पुंडरीकिणी नगरी है, उस नगरी का राजा सूरसेन अपनी रानी मंगलावती सहित राज्य करता था, राजा को रुद्रसेन, विष्णुसेन नाम के दो पुत्र थे, वे दोनों यौवन अवस्था में गये, अपने पुत्रों की ऐसी दशा देखकर राजा को वैराग्य
प्राने पर सप्त व्यसनी हो उत्पन्न हो गया और एक