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व्रत कथा कोष
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हार लेकर सेठ घर आया पर उसके मन में पाप जागा । उसने अपनी पत्नी कहा कि तेरा खोटे रत्न का हार है वह उसे दे दो और ये हार तुम ले लो पर सेठानी ने उसे समझाया कि ऐसा करना महान पाप है, राजा भी दण्ड देगा और जो घर में सम्पत्ति है वह भी चली जायेगी ।
पर सेठ लोभी था वह नहीं और उस ब्राह्मण को झूठ बोलकर हार घूमता है ? इसकी कीमत तो कोड़ी की पर गयी तो उलटा राजा तुझे दण्ड देगा मैं तो आया था वैसे ही वापस जाओ ।
माना, उसने उस हार को अपने घर रखा दिया वह बोला ऐसा झूठा हार लेकर क्यों भी नहीं है । यह बात यदि राजा के कान तेरे पर दया करता हूं इसलिए जैसे
ब्राह्मण तो घबरा गया फिर भी उसने वह हार लिया और बाजार के पैठ में जाकर चिल्लाने लगा " मेरा हार धनपाल ने ले लिया है और मुझे झूठा हार दिया है ।"
पर लोगों ने ब्राह्मण की बात नहीं मानी और सब हंसने लगे । उलटा लोगों ने उसके ऊपर चोरी का आरोप लगाया, तब ब्राह्मण ने खाने का त्याग किया | फिर १ महिना बीत गया । तब वह रोते-रोते राजदरबार में गया । तब राजा ने उसकी बात की चिन्ता की। गांव में ढिंढोरा पीटा गया, सब लोग राज दरबार में आये, धनपाल श्रेष्ठी को भी बुलाया गया मन्त्री आदि दरबार में बैठ गये । तब मन्त्री ने कहा ऐसे निर्णय कैसे होगा सब ब्राह्मण को ही चोर कहते हैं ।
इसलिए राजन ! अपनी नगरी में महिपाल श्रेष्ठी का पुत्र सुखानन्द यहां आया नहीं, वह बड़ा ही गुणी व चतुर है । उसे बुलाना चाहिए ।
तब महिपाल ने कहा "राजन् !
वह ऐसे नहीं आयेगा, उसे प्रादर व प्रेम से बुलाने भेजोगे तो वह अवश्य ही आयेगा ।" राजा का राजदूत उन्हें बुलाने गया । सुखानन्द ने कहा दो चार घण्टे के बाद में राज दरबार आऊंगा । तुम
जाओ । कुमार को हार की बात मालुम थी । इसलिए उसने अपनी चतुर दासी को बुलाया और कहा "तुम धनपाल के घर जाकर उसकी पत्नी से कहो कि ब्राह्मण का हार मंगवाया है राज दरबार में ।