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व्रत कथा कोष
के निवारण होने का क्या उपाय है ? यह सब हम को कहो।।
तब मुनिराज कहने लगे कि हे जिनमित्र ! इस कन्या ने पूर्वभव में अपने रूप-सौन्दर्य के मद में आकर एक दिगम्बर मुनिराज के ऊपर ग्लानि से थूक दिया था। इस कारण से यह कन्या रूप-सौंदर्य से रहित उत्पन्न हुई है, अगर यह कन्या रूप-सौन्दर्य से सहित बने ऐसी तुम्हारी इच्छा है तो तुम इसको रूपातिय व्रत करायो, व्रत की विधि पूर्णरूप से कही, लड़को ने व्रत को श्रद्धा से ग्रहण किया, मुनिराज उन सबको आशीर्वाद देकर पुनः जंगल में चले गये । इधर सुमति कन्या ने विधिपूर्वक व्रत का पालन किया, अंत में व्रत का उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से सुमति को पुनः रूपसौन्दर्य प्राप्त हुआ। एक श्रेष्ठि की प्राणवल्लभा होकर सुख भोगने लगी, उसके गर्भ से देवकुमारादि बहुत पुत्र उत्पन्न हुवे, एक दिन उसके घरपर सामुद्रिकशास्त्र का ज्ञाता एक ज्योतिषी आया और कहने लगा कि हे सुमति ! अब आपकी आयु मात्र सात दिन की रह गई है, ऐसा सुनकर सुमति को वैराग्य हुआ और एक आर्यिका के पास जाकर दोक्षा ले ली और तपश्चरण करने लगी, अंत में समाधिमरण कर स्त्रीलिंग का छेद करती हुई अच्युत कल्प में देव होकर उत्पन्न हुई, बाईस सागर तक सुखों को भोगकर मनुष्यभव धारण करके मुनिदोक्षा ग्रहण कर घोर तपश्चरण करते हुए कर्म काट कर मोक्ष को गई।
रूपार्थ वल्लरी व्रत कथा भाद्रपद कृ० अमावश्या (आश्विन कृष्णा अमावश्या) को शुद्ध होकर एकाशन करे, एकम को शुद्ध होकर मन्दिर में जावे, तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, नव देवता की प्रतिमा स्थापन करके पंचामृताभिषेक करे, प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे, पंच पकवान चढ़ावे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं प्रहं प्रहरिसद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधु जिनधर्म जिना गम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८