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व्रत कथा कोष
महान पराक्रमी, गुणी, प्रजा का हित सोचने वाला था। उसकी रानी विशालनयना थी । एक दिन राजा ने अपने मनोरंजन के लिये नाटककार को बुलाकर नाटक करने को कहा । नाटककार ने राजा को प्रसन्न करने के लिये अनेक . प्रकार के गीत और नृत्य आदि किये जिससे रानी का मन चलायमान हया और वह अपने साथ रंगी व चमरी इन दो दासियों के साथ राज वैभव छोड़कर गुप्त रूप से वेश्या का काम करने लगी। राजा को उसका वियोग सहन न हुआ और वह अपने पुत्र पर राज्यभार छोड़कर प्रार्तध्यान से मरकर उसी वन में हाथी हुअा। वह वन में भटक रहा था तभो वन में उसे मुनि महाराज के दर्शन हुये । उनके उपदेश सुनकर उसने अणुव्रत धारण किये जिससे वह मरकर सहस्त्रार स्वर्ग में देव हुमा। वहां की आयु पूर्णकर वह पाटलिपुत्र का महिचंद्र राजा हा।
एक बार वह वनक्रीड़ा के लिये गया था, वहां उसको मुनि महाराज के दर्शन हुये । मुनि महाराज का उसने धर्मोपदेश सुना तब तक वहां पर एक कुबड़ो, एक कुष्ठ रोगी और एक बहरी ऐसी तीन स्त्रियां उसे मिलीं जिन्हें देखकर राजा को उनके प्रति प्रीति उत्पन्न हुई, तब राजा ने महाराज से पूछा इसका कारण क्या है ।
महाराज ने कहा हे राजन ! इनमें से पहले भव में एक तेरी रानी और दूसरी दो दासी हैं। उन्होंने राज धर्म छोड़कर वेश्या का काम किया था । एक दिन राज्यमार्ग से जाते समय इन्हें मुनि के दर्शन हुये पर वे इनको अपशकुन लगे और उनको वश करने के लिये अपने हाव-भाव दिखाने लगी, पर महाराज इनके वश में नहीं हये उल्टे वे धर्मध्यान में लीन हो गये । मुनि उपसर्ग से इनका सौन्दर्य चला गया और वे कुबड़ी व बहरी हो गयी। वहां से मरकर नरक में गयी, वहां से निकलकर कई भव धारण किये, अब ये तीनों पापोदय के कारण कुबड़ी, कुष्ठ रोगी व बहरी उत्पन्न हुई हैं। जन्म लेते ही इनके माता-पिता चल बसे हैं, लोगों ने इनको घर से निकाल दिया है।
__ और राजा ! तू रानी के वियोग में मरकर हाथी हुआ पर मुनि उपदेश से अणुव्रत धारण कर देव हुआ, वहां से आकर अब तू राजा बना है। इसलिये इन्हें देख तुझे प्रेम उत्पन्न हुआ है । तब राजा ने कहा ये किस प्रकार इस दुःख से दूर होंगी ? तब महाराज जी ने कहा