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व्रत कथा कोष
रोहिणी व्रत को व्यवस्था तथा पद्मदेवैः प्रोक्तं चेति
यस्मिन् दिने समायाति, रोहिणीभं मनोहरम् ।
तस्मिन् दिने व्रतं कार्य न पूर्वस्मिन् परत्र वा ॥
अर्थ :-जिस दिन रोहिणी नक्षत्र हो उसी दिन व्रत करना चाहिए। आगेपीछे व्रत करने का कुछ भी फल नहीं होता है । रोहिणी नक्षत्र व्रत प्रत्येक महीने में एक बार किया जाता है।
यदा रोहिणी न स्यात् कृत्तिकामृगशीषौं स्तः तयोर्मध्ये किं करणीयं स्यादित्याह-काले यदि रोहिणीकायाः प्रोषधः न स्यात्, तदा स निष्फलः स्यात् कालेन विना यथा मेघः ।
वामदेवैः प्रोक्तमिदं यावत् कालं भं स्यात् तावत् कालं करोतु भवतकम्, न तु देवसिकास नियमः प्रोक्तः मुनीश्वरैः ; अर्थात् यावत् रोहिणी तावत् सर्वेषां त्यागः कार्यः । पारणादिने तदुत्तरानन्तरं च पारणा कर्त्तव्या। एतदेव शुक्लपञ्चमीकृष्णपञ्चमी जिनगुरण सम्पत्ति ज्येष्ठ जिनवर कवलचान्द्रायणादयो ज्ञातव्याः । रोहिणी तु त्रिवर्षाः स्यात्, पञ्चवर्षा सप्तवर्षा च संप्रोक्ता वसुनन्द्यादिसूरिभिः ; प्रादि शब्देन सकलकोति छत्रसेनसिंहनन्दिमल्लिषेण हरिषेण पद्मदेव वामदेवः संप्रोक्ता ग्राह्यः । अन्येऽप्याधुनिका दामोदर देवेन्द्रकोत्ति हेमकीादयश्च ज्ञेयाः ।
अर्थ :-- यदि व्रत के दिन रोहिणो न हो अर्थात रोहिणी नक्षत्र का क्षय हो कृत्तिका और मृगशीर्ष हों तो क्या करना चाहिए; इस प्रकार की शंका उत्पन्न होने पर प्राचार्य कहते हैं कि यदि समय पर रोहिणी व्रत का प्रोषध नहीं किया जायगा तो, उसका फल कुछ भी नहीं होगा। जिस प्रकार असमय पर वर्षा होने से उस वर्षा से कुछ भी लाभ नहीं होगा उसी प्रकार असमय में व्रत करने से कुछ भी लाभ नहीं होता है।
वामदेव प्राचार्य ने भी कहा है कि जब रोहिणी नक्षत्र हो तभी व्रत करना चाहिए । प्राचार्यों ने देवसिक व्रतों के लिए यह नियम नहीं बताया है । अर्थात् जिस