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व्रत कथा कोष
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करे तो उसे एक साड़ी तथा एक अन्य वस्त्र धारण कर व्रत सम्पन्न करना चाहिए ।
जिनालय के प्रांगरण में एक स्वच्छ दूध के समान सफेद चंदोवा लगाकर उसके नीचे सिंहासन बिछाकर भगवान् को स्थापित करना चाहिए । भगवान को स्थापित करने की विधि यह है कि एक घड़े को चन्दन, कपूर, केशर आदि से संस्कृत कर उसके ऊपर थाल रखकर भगवान को विराजमान करना चाहिए । प्रतिदिन श्रभिषेक, पूजन आदि कार्यों को उत्साह और उत्सवसहित करना चाहिए । पञ्चामृत से प्रतिदिन भगवान् का अभिषेक होना चाहिए । शान्ति प्राप्त करने के लिए अभिषेक के कलशों को स्वच्छ चंदोवे के ऊपर स्थापित कर मेघों के वर्षण के समान अभिषेक किया जाता है । जल, चन्दन आदि पदार्थों से भगवान् का अभिषेक होना चाहिए । गन्धोदक की चिन्ता इस प्रकार करनी चाहिए, मानो मेघ की जलधारा ही गिर रही हो । इस प्रकार अभिषेक के अनन्तर भगवान की पूजा करनी चाहिए ।
यदि तिथि-वृद्धि या तिथि- हानि हो तो सोलहकारण व्रत के समान एक दिन पहले से तथा एक दिन अधिक मेघमाला व्रत नहीं किया जाता है । मासिक व्रत होने के कारण इस व्रत की पारणा पात्रदान के अनन्तर की जाती है । आश्विन वदि प्रतिपदा को व्रत करने के अनन्तर इस व्रत की समाप्ति होती है। पांच वर्ष तक व्रत किया जाता है, पश्चात् उद्यापन करने का विधान है । मेघमाला व्रत में तिथिवृद्धि और तिथि हानि में सोलहकारण व्रत के समान व्यवस्था है ।
मेघमाला और षोडशकारण व्रतों की विधि
मेघमालाषोडशकाररणञ्चैतद्द्द्वयं समानं प्रतिपद्दिनमेव द्वयोरारम्भं मुख्यतया करणीयम् । एतावान् विशेषः षोडशकारणें तु प्राश्विन कृष्णा प्रतिपदा एव पूर्णाभिषेकाय गृहिता भवति, इति नियमः । कृष्णपञ्चमी तु नाम्न एव प्रसिद्धा ।
अर्थ :- मेघमाला और षोडशकारण व्रत दोनों ही समान हैं । दोनों का प्रारम्भ भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से होता है । परन्तु षोडशकारण व्रत में इतनी विशेषता है कि इसमें पूर्णाभिषेक आश्विन कृष्णा प्रतिपदा को होता है, ऐसा नियम है । कृष्णा पञ्चमी तो नाम से ही प्रसिद्ध है ।