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व्रत कथा कोष
कथा
राजग्राही नगरी में सागरदत्त सेठ अपनी प्रभाकरी सेठानी के साथ रहता था, उसको दो पुत्र थे, एक नागदत्त दूसरा कुबेरदत्त, नागदत्त मिथ्यादृष्टि था, कुबेरदत्त व उसकी पत्नी बहुत जिनधर्म भक्त थी ।
एक बार सागरदत्त सेठ ने मुनिराज से पूछा स्वामिन मेरी श्रायु कितनी है, मुनिराज ने कहा मात्र तीन दिन की ।
तब सेठ ने वैरागी होकर दीक्षा ली और मरकर स्वर्ग में देव हुआ ।
सेठ के पुत्र ने मुनिराज से पूछा गुरुदेव ! मेरे संतान होगी कि नहीं ? तब मुनिराज ने कहा तुम्हारे चरमशरीरी पुत्र होगा, कुछ दिन बाद उसको एक प्रीतिकर नामका पुत्र हुआ । सेठ महावीर भगवान के समवशरण में जाकर दीक्षा लेकर तपस्या कर मोक्ष को गये ।
प्रीतिकर का जीव पूर्व भव में सियाल का जीव था, उसने मुनिराज से रात्रि भोजन त्याग व्रत लिया, और अन्त में कंठगत प्रारण होने पर भी रात्रि में पानी भी नहीं पीया और मरकर दृढ व्रत के कारण कुबेरदत्त सेठ के यहां प्रीतिकर नाम का पुत्र हुआ। वहीं अन्त में कर्म काटकर मोक्ष गया ।
इस प्रकार और भी अनेक रात्रि भोजन त्याग व्रत की कथाएं हैं। एक चांडालनी ने भी इस व्रत को ग्रहण किया था, और वो भी व्रत के प्रभाव से सेठानी के गर्भ में कन्या होकर उत्पन्न हुई, अन्त में मरकर स्वर्ग में देव हुई, प्रागे मोक्ष जायेगी ।
रक्षाबन्धन व्रत कथा
इस व्रत के लिए श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को प्रातः शुद्ध होकर मन्दिर में जावे तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, मूलनायक भगवान का पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर तथा यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।