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व्रत कथा कोष
उपसर्ग पायो सात सौ मुनि पानि जिनऊ निवार की। तुम सुनो भविजन येक चित्त है कथा विष्णु कुमार की ।।२।।
दोहा
बन्दौ विष्णु कुमार मुनि, मुनि उपसर्ग निवार । वात्सल्य अंग को कथा, सुनो भविक जनसार ॥३॥
चौपाई
अब यह जम्बूद्वीप मंझार, भरत क्षेत्र सोभित सिंगार । देश प्रवन्ती उत्तम ठौर, तेहि समान देश नहि और ।।४। तहां नगर उज्जैन समान, अवनी विष न दीसै प्रान । बन उपवन राजत चहुं ओर, क्या शोभा बरनौ तेहि ठौर ।।५।। बाग बावरी कूप गहीर, कमल सरोवर निर्मल नीर ।। दुर्ग खातिका गोपुर बने, कनक कलश धारै मन मने ॥६॥ मन्दिर महल उतंग आवास, मानो इन्द्र पुरी सुख वास । चित्र विचित्र अनुपम करै, के उपमा ताको विस्तरै ॥७॥ जिन मन्दिर पर धुज फरहरे, ते दामिन को लज्जित करै । वेदी पर कलशा झलमले, मानो गगन मिलन को चले ।।८।। तिन में प्रतिमा श्री जिन तनो, दर्शन मन्त्र पाप मोचनी । जती अजिका तिन में रहै, धर्म ध्यान अपने व्रत गहै ।।६॥ सुन्दर गली सघन बाजार, बिच बिच मानिक चौर द्वार । चहल पहल दीसै चहु और, बरन छत्तीस बसे तेहि ठौर ।।१०।। सकल वस्तु तंह दीसै घनी, गिनती गिनत जाय नहि गनी । सुख सौ रहै व्यापारी लोग, पंचामृत रस कीजै भोग ॥११॥ श्री वर्मा राजा तहं तनो सुख सों राज कर प्रापनो। जैन धर्म पर प्रति लवलोन, न्याय मार्ग में परम प्रवीन ॥१२॥