________________
व्रत कथा कोष
सिंह बली नाम ताको राय, करन उपद्रव को तिहि प्राय। ताके बस करिये को चित, ता कारण हम दर्बल मित्त ॥११३।। बली तब बोले राय सुनेह, यह प्राज्ञा तुम हमको देहु । तुरन्त ले आवै ताको बांधि, तब हम धरै जनेऊ कांध ।।११४।। राजा कहै सुनौ बलिराज, जो यह करो हमारो काज । जो मांगो सो तुमको देहु, यह तुमरी हम सेव करेऊ ॥११५।। बलि बोले सुनि पदम सुजान, प्रथम कर तुमरो कल्याण । ता पाछै मांगे सो लेहि यही वचन मोहि राजा देहि ॥११६॥ राजा कहै यह मोहि प्रमान, बचन हर तो जिनकी पान । सकल विप्र मिल पहले गहे, नमर कुम्भ पुर पहुंचत भये ॥११७॥ खबर भयो राजा को जाय, आसन से उठि प्रायो राय । शुद्धचित प्रति प्रानन्द भरो, पावत द्विज के पायनि परयो ॥११८॥ विप्र जानि उठि मिलियो प्राय, इन बांधो धरे भुजन चढाय । ले पायो तिन पकरि प्रवास, राजा पदम राय के पास ।।११।। बांधि हाथ तिन ठाढो कियो, राजा उठि तेहि प्रासन दियो । बैठो तहं नीचो सिर नाय, बहुत भांति सो भक्ति कराय ॥१२०॥ धन्य पदम नृप पद्म समान, जाको सुजस सुगंध बखान । अरू भूपति है मधुकर राय, तुम चरणन गुंजत लपटाय ॥१२१॥ तुम नृप विक्रम भोज समान, क्या उपमा दोजै तुम प्रान । जस काहु ते नाहि भयो, ते सब तुमही कीन्हो नयो ॥१२२॥ ऐसो आज कहो को कर, शत्रु पाप जिस करूणा घरे । ऐसे नृप व्है है ना भये, जैसे तुम्हे विधाता ठये ।।१२३॥ कौन जीभ ते स्तुति कर, प्राज्ञा करी तुम नीर भरे । अरू हमको किंकर समगिनौ, और बात हम कहलंग भनौ ॥१२४।।