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प्रत कथा कोष
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ढोल न कीजै जाव इस घरी, कारज करौ यही धरी बली। यह सुनि खग पुनि छिन मे जाय, विद्या के बल पहुंचो जाय ॥१४६।। नमस्कार करि बैठो पास, सब विरतान्त कहयो प्रकासि । जब मुनि सुन्यौ रिद्धि को नाम, मन मे शंका उपजी ताम ॥१४७॥ रिद्धि परिक्षा लीजै प्राज, हाथ पसार दियो मनिराज । तब गिरतरु भेवत भयो, लांबी चलो उदधि लो गयो ॥१४८।। तब मुनि जानो सांची बात, मोहि रिद्धि उपजी है विख्यात । मुनि उपसर्ग निवारो जाय, श्री जिनवर के धर्म सहाय ॥१४॥ तब मुनि हस्तनागपुर गये, पद्म राय घर पूजत भये । तिन मुनि को जब देखा जाय, नमस्कार कहि पूजै पाय ।।१५०।। ले चरणोदक नायो शीष, धर्म वृद्धि दीनी मुनि ईश । पूछौ समाचार हौ वीर, हो सब मे नाशन पर पीर ॥१५१॥ ऊचे आसन पर बैठाय, हाथ जोड ठाढो भयो राय । बहु विधि भक्ति करत नृप भये, तब मुनिवर पूछत भये ।।१५२॥ अहो बीर तुम यह क्या कियो, मरण कष्ट मुनिवर को दियो। अपने कुल को छोड़ी रीति, कह रची तुम यह विपरित ॥१५३।। हमरे कुल पूरव जो भये, कुरू बन्शी राजा ते ठये। तिनको सुन करतुत विशेष, सो राजा मन मे धर देख ॥१५४॥ प्रथम सोम श्रेयांश नरेन्द्र, जिनधर प्राये प्रादि जिनेन्द्र ।। तिनहि इक्षु रस दियो आहार, प्रथम दान भाष्यो संसार ॥१५॥ हमरे वश चार तीर्थेश, प्रगटे जो तम हरण दिनेश । धर्म नाथ अरु शान्ति जिनेन्द्र, कुन्ध अरह जिन कर्म निकन्द ।१५६।। चारो प्रानि लीयो अवतार, हमरे कौन बडो संसार । तिनमे तीन चक्रवती भये, तापर काम देव पद लहे ॥१५७।।