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व्रत कथा कोष
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बरस बरस में नौ नौ वार, नों बरसे कोजे इकसार । अथवा एक बरस मन लाय, बारह मास करे जो ध्याय ॥ थानइकासोमब [१] बीजौर, बिम्बा सरस सदाफल प्रौर । साधि सकल चनी फल करो, पार्श्वनाथ स्वामी मन धरो॥ इतने फल ऐसी विधि जान, नरघर देहुसरावग [२] मान । हर हर बरस करो यह जोग, दुख दारिद्र न व्यापे रोग ॥ सुनि साहुन मन गहगही भई, नमस्कारकरि पुनि घर गई। ताने परिजन लियो बुलाय, मुनि के वचन कहे समुझाय ।। सुनी बात साहुनि पै जाम, परिजन बात विसारी ताम । यह तो चून तनो फल प्राइ, निदो रविव्रत चित न सुहाय ॥
मुनीश्वर का उत्तर दोहा-पोते कर्म पड्यो घनो, सुख में दुख भयो प्राय । मतिसागर को लक्ष्मी, विहूंडी छिन में जाय ।।
चौपाई गई लक्ष्मी भयो सन्देह, चितवन साहु पाप मन एह । देसन फिरत बहुत दुख भयो, सो धन देखत ही सब गयो । गये पटोले दक्खिन चीर, गये अंगरजे वास गहीर । सोनो रूपो गयो कपूर, बिहुँडो लाल चुनी को चूर ॥ प्ररथ दरब विहुंड़े भण्डार, साहुनि को गजमोतिन हार । रतन जड़ित बिहुँड़े तोरण, विहुड़े कर कंकन प्राभरण ।। विहुड़े थार तमोर कचौर, विहुई कज्जल कुंकुम रौर । विहुँड़े पान फूल के भोग, विहुंसे रस षोड़श संयोग । सूनी बङ्ग तुरंग को सार, गये ते चंदन वास अपार । दासी दास बिड सब गये, कौन पाप तें ये फल भये ।।