________________
५२६ ]
व्रत कथा कोष
चौपाई पुत्री सुनहु सर्व व्योहार, कहों सुवृष धन होय अपार । धर्म-धुजा गुरण सुन्दरी, वासर रमरण करे बहुररी ॥ ऐसी जुगत बहुत दिन गये, सात पुत्र ताके घर भये ॥ रूपवंत बहु तेज अपार, दिन-दिन बाढ़े साहुकुमार । मात पिता की आज्ञा लेहि, भूले मारग पांव न देहि ॥ ज्यों ज्यों बढे सयाने भये, छहों पुत्र साह परिणये । लुहरो गुणधर बुद्धि विशाल, घालो पठन गयो चटशाल ॥ पढ्यो संस्कृत प्राकृत दान, व्याकरणादिक ग्रंथ महान । पढ्यो श्रावकाचार विचार, ज्योतिष सामुद्रिक सुखकार । अस्त्र-शस्त्र विद्या रणधीर, सब सीखी गुणधर वरवीर । अधिक बात को कहे बढ़ाय, पढ़ि गुरु चरणपूजि घर पाय ॥ धाय पिता गोदी भरि लियो, जननी प्राय सोस चुबियो । प्रागे और कथांतर होय, मन घर भाव सुनिजे सोय ।। जो यह धर्म सुने धरि भाव, होइ सिद्ध स्वर्गों में ठाव । जो मिथ्यामति निन्दा करे, नरक घोर सो निहचै परे । सहसकूट चैत्यालय जहां, महा मुनीश्वर बैठे तहां । सुन नरेन्द्र मन भयो उछाव, वेगें कियो निशाने घाव ।। नगर लोग सब वंदन गयो, सहपिरवार गमन तिन कियो। चलत चलत सो पहुँचे तहां, महामुनीश्वर बैठे जहां ।। बंदे चरण धरो मन भाव, पाप धर्म सब पूछो राव । पाप करत जैसा फल होय, धर्म करत फल लाहे सोय ॥ स्वामी कहो सर्व प्राचार, जैसो जीव तनो व्यवहार । शिवपुरजात भोति जिन करो, पार्श्वनाथ स्वामी मन धरो । सुदि अषाढ़ जब रविदिनहोय, संजम शील अराधो सोय । नोर धार ढारो जिनराय, पाहि दोजे दान बुलाय ।।