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व्रत कथा कोष
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ठाठे भक्ति करै सब सुरनर धन्य-२ तुम देवा । यह उगसर्ग निवारो मुनि को, जासु पुन्य नहि सेवा । तुम मुनिराज महा जस लीनो कोनो धर्म अपारा । वात्सल अंग सुभ हो पूरण, तुमही विष्णु कुमारा ॥१६०॥ राजा पद्म महा भय भीत, तबहि दौरि करि आये। विष्णु कुमार महा मुनिवर, के चरणनि शीश नवावे । धनि स्वामी उपसर्ग निवारण कारण पाय के प्राय । धन्य भाग मै अपने जाने तुम दर्शन हम पाय ॥११॥
सोरठा सुरनर खग मुनि प्राय, सब उपसर्ग निवारिये । वन्दे बहु विधि पाय, मुनि प्रकम्पनाचार्य के ॥१९२॥ तब मुनि बलि देख, भाष्यो विष्णु कुमार सो। जब ये छुटे विशेष, तब पाहार हम सब करै ।।१६३।।
"चौपाई" यह सुनि मुनि दियो छडाय, रहे मन्त्रि सब शीश नवाय । धृग धृग जन्म हमारो प्राय, ए करनी हम कोनी जाय ॥१९४॥ सोइन हमसो ऐसी करी, इन मन मे जो दया प्रादरी । झुठा मिथ्यातम हम दीन, जामे दया अंग नहि लीन ॥१६५।। बिना दया करनी सब छार बिना दया नर जन्म चांडाल । बिना दया सद्गति नहि होय, कोटी उपाय करे जो कोय ॥१९६॥ तब चारो श्रावक व्रत लियो मिथ्या धर्म छाडि सब दियो । चारो स्तुति मुनि को कर, लै लै शीश चरण पर धरै ।।१६७।। पुरजन लोग जुरे सब जाय, बन्दे मुनि गरण सब शीश नाय । अपने अपने घर ले गये, मुनि की सेवा करत जु भये ॥१९८।।