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व्रत कथा कोष
का प्रयत्न करे । रात्रि जागरण पूर्वक व्यतीत करे तथा "प्रों ह्रीं अहं श्रीपार्श्वनाथाय नमः" इस मन्त्र का तीन बार एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए । नौ वर्ष व्रत करने के उपरान्त उद्यापन करने का विधान है। ......---
__पहले वर्ष नव उपवास, दूसरे वर्ष नमक बिना माड़भात, तीसरे वर्ष नमक बिना दाल-भात, चौथे वर्ष बिना नमक खिचड़ी, पांचवें वर्ष बिना नमक रोटी, छठवें वर्ष बिना नमक दही-भात, सातवें और आठवें वर्ष बिना नमक मूगकी दाल और रोटी तथा नौवें वर्ष एक बार का परोसा हुआ बिना नमक का भोजन करे । थाली में जूठन नहीं छोड़ना चाहिए । प्रथम रविवार और अन्तिम रविवार को प्रतिवर्ष उपवास करना चाहिए । व्रत के दिन नवधा भक्ति सहित मुनिराजों को भोजन कराना चाहिए।
रविव्रत का फल सुतं वन्ध्या समाप्नोति दरिद्रो लभते धनम् । मूढः श्रु तमवाप्नोति रोगी मुञ्चति व्याधितः ।।
अर्थ :-रविवार का व्रत करने से वन्ध्या स्त्री पुत्र प्राप्त करती है, दरिद्री व्यक्ति धन प्राप्त करता है, मूर्ख व्यक्ति शास्त्र ज्ञान एवं रोगी व्यक्ति व्याधि से छुटकारा प्राप्त कर लेता है।
रविवार व्रत कथा आषाढ शुक्ला के अंतिम रविवार को शुद्ध होकर जिन मंदिर जी में जावे, प्रदक्षिणापूर्वक भगवान को नमस्कार करे, पार्श्वनाथ भगवान व धरणेन्द्र पद्मावति की मूर्ति का पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर व यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे।
___ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं श्री पार्श्वनाथ तीर्थकराय धरणेंद्र पद्मावती यक्षपक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८