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व्रत कथा कोष
तक पांचों ही दिन एकासन करना पड़ता है । इस व्रत को २६ वर्ष करना पड़ता है, Marat सब विधि प्रथम विधि के अनुसार करे ।
व्रत का उद्यापन करते समय, रत्नत्रय विधान करे एक रत्नत्रय प्रतिमा नवीन लाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे, मुनि प्रायिका, श्रावक-श्राविका सब को यथायोग्य प्राहारादि उपकरण देवे, मन्दिर का जीर्णोद्धार करे, मन्दिर में उपकरण देवे । एक बिधि में कांजीकाहार से एकासन करके भो कर सकते हैं, १३ वर्ष करे ।
कथा
पूर्व विदेह के कच्छ देश में वीतशोकपुरी का राजा वैश्रवरण अपनी राज रानी श्रीदेवी के साथ रहता था, सुख से राज्य करता था ।
एक बार नगरी के उद्यान में सुगुप्ताचार्य मुनिराज का चतुविध संघ आया, राजा को वनमाली के द्वारा समाचार प्राप्त होते ही पुरजन परिजन सहित मुनिसंघ के दर्शन के लिए गया, वहां जाकर धर्मोपदेश सुना, मुनिराज के मुख से रत्नत्रय का स्वरूप सुनकर राजा बहुत सन्तुष्ट हुआ और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा कि हे गुरुदेव ! मेरे श्रात्म कल्याणार्थ मुझे ऐसा कोई व्रत प्रदान कीजिये, जिससे मुझे शीघ्र मोक्ष सुख की प्राप्ति हो । तब मुनिराज ने राजा को रत्नत्रय व्रत दिया, राजा ने नगर में प्राकर व्रत को विधिपूर्वक किया, अन्त में व्रत का उद्यापन किया । एक दिन नगर के बाहर बिजली के पड़ने से किसी पेड़ को नष्ट होता देखा, जिससे राजा को वैराग्य उत्पन्न हो गया और अपने पुत्र को राज्य देकर दिगम्बर दीक्षा ले ली और घोर तपश्चरण करते हुए षोडसकारण भावना भाते हुए तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया, अन्त में समाधि मरण कर अपराजित स्वर्ग में देवेन्द्र हो गया । वहां से च्युत होकर मल्लिनाथ तीर्थंकर होकर मिथिला नगरी में उत्पन्न हुए, इन्द्रों ने पाँचों कल्याएक मनाया अंत में मल्लिनाथ तीर्थंकर सर्व कर्म काट कर मोक्ष को गये । यह इस रत्नत्रय व्रत का फल है । भव्य जीवो ! तुम भी इस व्रत को अच्छी तरह से पालो ।
श्रथ रतिकर्मनिवारण व्रत कथा
विधि :- पूर्ववत् सब विधि करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि चैत्र कृष्णा ५