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पत्त या कोष
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को एकाशन करे ६ को उपवास करे । शान्तिनाथ भगवान की पूजा, मंत्र जाप पत्त मांडला आदि करे।
रविव्रत की विधि प्रादित्यव्रते पार्श्वनाथार्कसंज्ञके प्राषाढमासे शुक्लपक्षे तत्प्रथमादित्यमारभ्य नवसु अर्कदिनेष व्रत कार्य नववर्ष यावत् । प्रथमवर्षे नवोपवास:, द्वितीयवर्षे नवैकाशनाः तृतीयवर्षे नवकाञ्जिकाः, चतुर्थवर्षे नवरूक्षाः, पञ्चमवर्षे नवनीरसाः, षष्ठवर्षे नवालवणाः, सप्तमवर्षे नवागोरसाः अष्टमवर्षे नवोनोदराः, नवमववर्षे अलवणा ऊनोदराः नव । एवमेकाशितिः कार्याः । व्रत दिने श्री पार्श्वनाथस्याभिषेकं कार्य पूजनं च । समाप्तावुद्यापनं च कार्यम्, ये भव्या इदं रविव्रतं विधिपूर्वकं कुर्वन्ति तेषां कण्ठे मुक्तिकामिनी कण्ठरत्नमाला पतिष्यति ।
अर्थ :-रविव्रत में आषाढ़ मास शक्ल पक्ष में प्रथम रविवार पार्श्वनाथ संज्ञक होता है, इससे प्रारम्भ कर नौ रविवार तक व्रत करना चाहिए। यह व्रत नौ वर्ष तक किया जाता है । प्रथम वर्ष में नौ रविवारों का उपवास, द्वितीय वर्ष में नौ रविवारों को एकाशन, तृतीय वर्ष में नव रविवारों को काजी-छाछ या छाछ से बने महेरी आदि पदार्थ लेकर एकाशन, चतुर्थ वर्ष में नव रविवारों को बिना घी का रूक्ष भोजन, पञ्चम वर्ष में नौ रविवारों को नीरस भोजन, षष्ठ वर्ष में नौ रविवारों को बिना नमकका अलोना भोजन, सप्तम वर्ष में नौ रविवारों को बिना दूध, दही और घृत के भोजन, अष्टम वर्ष में नौ रविवारों को ऊनोदर एवं नवम वर्ष में नौ रविवारों को बिना नमक के नौ ऊनोदर किये जाते हैं । इस प्रकार ८१ व्रत-दिन होते हैं । व्रत के दिन श्री पार्श्वनाथ भगवान् का अभिषेक और पूजन किये जाते है । जो विधिपूर्वक रविव्रत का पालन करते हैं, उनके गले में मोक्षलक्ष्मी के गले का हार पड़ता है । व्रत पूरा होने पर उद्यापन करना चाहिए ।
__विवेचन :-आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से लेकर नौ रविवारों तक यह व्रत किया जाता है। प्रत्येक रविवार के दिन उपवास या बिना नमक का एकाशन करने का नियम है । व्रत के दिन पार्श्वनाथ भगवान् का पूजन, अभिषेक करे तथा समस्त गृहारम्भ का त्याग कर, कषाय और वासना को दूर करने