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व्रत कथा कोष
फिर पापी बोले तब जाय, मन्त्रीगण व दोषी प्राय । इतने मुनिवर है इन माहि, बोलन कोऊ जाने नाहि ॥४६॥ ये सब गूंगे राय, की तुम आगे बोलि न जाय । जग मे ये कहवति सब कहैं, मूरख जती मौन व्रत है ॥४७॥ जिनको पढ गुनि श्रावे नाहि, ते मूरख जड मौन गहाहि । ये सब है मुनि वृषभ समान, यह राजा निश्चय करि जान ||४८ ||
तासन मौन इन गहौ, तुम श्रागे कछु जात न कहौ । ऐसी कहत भूप के संग, चले जात सब फूलत अंग ||४६ || तब राजा बोल्यौ हरषाय, इनकी महिमा कहो न जाय । इनको बन्द इन्द्र फनीन्द्र, चक्री खग देवन के देव ॥ ५० ॥ जो जन इनकी निन्दा करें, सो नर स्वान मूस हो मरे । ये मुनिवर सब ध्यानारूढ, इनकी महिमा अगम अगूढ || ५१ || इतने में एक मुनिवर ताम, श्रुत सागर है ताको नाम । किये श्राहार श्राइ गयौसोइ, ता सम्मुख बोल्यौ प्रविनई ॥ ५२ ॥
उन मह को यह प्रावत चलों, बांय वृषभ जो तन को भलो । ता सम्मुख बलि बोल्यौ जाय, तक्र पीत बहु कुक्ष भराय ।। ५३ ।।
तब मुनिसुनि करि उत्तर दियो, रे जड तक पोत किम कियो । तक सेत प्रति निर्मल महा, कौन ग्रन्थ में पीरो कहा || ५४ || तुमको लह्यो तक्र प्यौसार, गाय मूत के पोवन हार । ताके धोखे पीरो कह्यो, तक्र मूत को भेद न लह्यो ।। ५५ ।। तेतिस कोटि देवता रहै, गाय योनि मे तुम दुज कहै । जब योनि को वृषभ लगाय, तब वै देव
कहां कों जाय ।। ५६ ।। गाय को माता कहे जो येह, मेरे मन उपज्यो सन्देह | गाय योनि सो निकसो होय, फिर ताहि को लागे सोय ।। ५७ ॥