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ब्रत कथा कोष
से तीर्थंकर भगवान को पांच नैवेद्य चढ़ावे, उसी प्रकार जिनवाणी को ६, प्राचार्य को ३, पद्मावती को २, रोहिणी देवी को २, ज्वालामालिनी देवी को ५ (ब्रह्मदेवको) क्षेत्रपाल को एक, इस प्रकार नैवेद्य चढ़ावे, एक ध्वज तैयार कर खड़ा करे, तीन मुनिराज को आहारदान देवे । आवश्यक सर्व उपकरण देवे, इस व्रत का यही उद्यापन है।
कथा
इस व्रत को मरुभूति ने किया था, इसलिये पार्श्वनाथ तीर्थंकर होकर मोक्ष में गये, व्रत कथा की जगह पार्श्वनाथ चरित्र पढ़ना चाहिये, और भी इस व्रत को निर्नामिका स्त्री ने पालन किया, इसलिये श्रीमति नामक राजकन्या हुई इत्यादि ।
फल मंगलवार व्रत कथा आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन महीने में मंगलवार को व्रतधारियों को शुद्ध होकर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा पंचामृताभिषेक का सामान लेकर जिनमन्दिर में जाना चाहिए, प्रथम मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, ईर्यापथ शुद्धि करके भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, भगवान का पंचामृताभिषेक करके पूजा करे, श्रुत की पूजा, गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षी व क्षेत्रपाल की पूजा करे, पंचप्रकार का पकवान बनाकर बारह बार चढ़ावे, एक पाटे पर पृथक २ पान लगाकर उनके ऊपर पृथक २ अक्षत, सुपारी, फल, फूल, रखे, तिल, गुड़, और भीगे हुए चने रखे, केला रखे, हल्दी, कुकु
रखे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं परमब्रह्मरणे अनंतानंत ज्ञानशक्तये अर्हत्परमेष्ठिने नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, सहस्र नाम पढ़े, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में महाअर्घ्य लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगलारती उतारे, ब्रह्मचर्यपूर्वक शक्तिअनुसार उपवासादि करे, सत्पात्रों को दान देवे, इस व्रत को बारह महिने १२ दिन मंगलवार की मंगलवार करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय भगवान का अभिषेक करके १२ पात्रों में नैवेद्य भरकर, बाहर नारियल रखे, अनेक प्रकार के फल रखे, एक सुवर्ण पुष्प रखे,