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व्रत कथा कोष
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वैश्य के घर में छप्पन कोटि दीनार की सम्पत्ति आई, दरिद्रता दूर हो गई, सुख से समय व्यतीत करने लगे, अन्त में मरकर स्वर्ग में देव हुए, मनुष्यभव धारण कर संयम का पालन किया और मोक्ष सुख को प्राप्त किया।
इसी व्रत के प्रभाव से ही सीतादेवी राम की पट्टराणी हुई, चेलना श्रेणिक को प्राणवल्लभा हुई, आदि।
अथ मघवाचक्रवति व्रत कथा व्रत विधि :-चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष में प्रथम सोमवार को एकभुक्ति करे और मंगलवार को सुबह शुद्ध कपड़े पहन कर अष्ट द्रव्य लेकर मन्दिर जाये । पीठ पर अनन्तनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा के साथ किन्नरयक्ष व अनन्तमति यक्षी को स्थापना करे । पंचामृत अभिषेक करे । अष्ट द्रव्य से अर्चना करे । श्रुत व गणधर की पूजा करके यक्षयक्षी व बह्मदेव की अर्चना करनी चाहिए। भगवान के सामने नंदा दीप लगाना चाहिए । पंच पकवान का नैवेद्य बनाकर चढ़ाना चाहिए ।
जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं अनंतनाथ तीर्थंकराय किन्नरयक्ष अनंतमति यक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ पुष्पों से जाप करे। १०८ बार णमोकार मन्त्र का जाप करे । यह व्रत कथा पढ़नी चाहिए । महार्घ्य लेकर तीन प्रदक्षिणा देते हुये मंगल प्रारती करे । उस दिन उपवास करे । सत्पात्र को दान देकर पारणा करे । तीन दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे ।।
__ इस प्रकार बारह मंगलवार पूजा पूर्ण होने पर प्राषाढ़ अष्टान्हिका को उद्यापन करे । उस दिन अनन्तनाथ तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे । चतुःविध संघ को दान दे।
कथा इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र में नरेन्द्र नामक नगर है । वहां पहले नरपति व कमलावति पट्टराणी रहते थे। उनको धरसेन नामक पुत्र था। मन्त्री, पुरोहित, श्रेष्ठी सेनापति वगैरह भी थे।