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व्रत कथा कोष
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उस दिन जिनमन्दिर में जाकर भगवान को प्रदक्षिणा पूर्वक नमस्कार करे, भगवान का पंचामृताभिषेक करे, प्रष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे, उस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे, व्रत कथा पढ़े, मन्त्र जाप्य करे, अगले वर्ष व्रत का उद्यापन करे, उद्यापन करने की शक्ति नहीं होने पर व्रत को दुगुना करे । इसी को प्रथम रत्नावलि कहते हैं ।
(२) दूसरी विधि इस प्रकार है- पहले दिन एकाशन दूसरे दिन उपवास, ३ दिन एकभुक्ति, चौथे व पांचवें दिन दो उपवास, छठे दिन एकभुक्ति, सातवे, आठवें और नौवें दिन लगातार तीन उपवास, दशवें दिन एकभुक्ति, ग्यारवें दिन, बारहवें दिन, तेरहवें दिन, चौदहवें दिन लगातार ४ उपवास, पंद्रहवें दिन एक भुक्ति करे, सोलहवे, सतरहवें, अठारहवें, उन्नीसवें व बीसवें दिन लगातार पांच उपवास करे, इक्कीसवें दिन एकभुक्ति करे, २२-२३-२४-१५-२६ वें दिन लगातार उपवास करे, २७वें दिन एकभुक्ति करे, अठाइसवें दिन, २हवें दिन तीसवें दिन, ३१ वें दिन चार उपवास, बत्तीसवें दिन एकभुक्ति करे, ३३ ३४-३५वें दिन उपवास ३६ वें दिन एकभुक्ति करे, फिर ३७वें व ३८वें दिन उपवास, ३६वें दिन एकभुक्ति, ४० वें दिन उपवास, ४५ वें दिन एकभुक्ति करे, इस व्रत का प्रारम्भ श्रावण शुक्ला प्रतिपदा से करे, इसमें ३० उपावास ११ एकभुक्ति होती है, इसको लघुरत्नावली व्रत भी कहते हैं ।
( ३ ) तीसरी विधि में यह व्रत ३६ दिन में पूर्ण होता है । इसमें ३०० उपवास और ६६ पारणे करने पड़ते हैं । इस व्रत का प्रारम्भ किसी भी महीने से करे ।
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(४) चौथी विधि और भी देखी जाती है, इस का उपवास क्रम ऐसा है, एक उपवास, एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पाररणा, दो उपवास एक पारणा, इस प्रकार ८ बार करे, उसके बाद एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पराणा, तीन उपवास एक पारणा, ४ उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, ६ उपावास एक पाररणा ७ उपवास एक