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व्रत कथा कोष
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कथा श्रेणिक महाराज और रानी चेलना की कथा पढ़े।
मुष्टितंदुल व्रत कथा प्राषाढ़ मास की प्रतिपदा के दिन यह व्रत ग्रहण करना चाहिए, उस दिन से लगाकर प्रत्येक दिन एक मुट्ठी भर चांवल रोज एक पात्र में इकट्ठा करके रखे, इस प्रकार रोज एक-एक मुठठी चांवल उस पात्र में डालता रहे, चतुर्दशी तक चांवल इकट्ठा करता रहे, पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजाभिषेक का द्रव्य लेकर जिनमन्दिर में जावे, ईर्यापथ शुद्धि क्रिया करके नमस्कार करे, भगवान को अभिषेक पीठ पर यक्षयक्षि सहित स्थापन करके पंचामृत अभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, जिनवारणी गुरु की पूजा करे यक्षर्याक्ष व क्षेत्रपाल इनका अादि देकर पूजा सम्मान करे, चौदह दिन तक एकत्र किये हुए चांवलों का नैवेद्य बनाकर भगवान को चढ़ावे, उस दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, उपवास करे, धर्मध्यान से समय बितावे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्ली ऐं अहं परमब्रह्मणे अनंतानंत ज्ञानशक्तये प्रहत्परमेष्ठिने यक्षयक्षी सहितेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्पों से जाप्य करे, जिनसहस्रनाम का पाठ करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, महाअर्घ्य करके हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतार कर अर्घ्य भगवान के सामने चढ़ा देवे, रात्रि में शास्त्र स्वाध्यान करे, दूसरे दिन जिनपूजा करे, सत्पात्रों को दान देवे, अपने पारणा करे । ____ इस प्रकार आषाढ़ कृष्ण अमावस्या के दिन सर्व पूजा विधि करे, इस प्रकार यह
आषाढ़मासी पूजा हुई, इस पूजा का नाम सौधर्म कल्प है इस विधि को करने से ११ हजार उपवास का फल मिलता है, श्रावण महिने में भी पहले कहे अनुसार पूजा विधि करे, दोनों पक्षों में पहले जैसा कहा है वैसी पूजा विधि करे। इस महिने की पूजा का नाम ईशानकल्प है, इसका फल १६ हजार उपवास करने का है, भाद्रपद मास के दोनों पक्षों के उपवास करने से, पूर्वोवत