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व्रत कथा कोष
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किया, नगर में वापस लौट आये, नगर में आकर व्रत को अच्छी तरह से पालन किया अन्त में व्रत का उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से राजा को दो पुत्र उत्पन्न हुए, एक का नाम जय और दूसरे का विजय था, पुत्र बड़े होने पर बड़े को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली, अन्त में मोक्ष सुख की प्राप्ति की।
बारह भेद तप व्रत लाइन (क्रम) से बारह उपवास। उपवास करने के बाद क्रम से कांजिकाहार बारह, अन्नाहार बारह, मनचित्याहार बारह, रूक्ष नीरस आहार बारह, घृतरहित एकाशन बारह, तेल रहित एकाशन बारह, दूध रहित एकाशन बारह, दही रहित एकाशन बारह, इक्षुरस रहित एकाशन बारह, मीठा (नमक) रहित एकाशन १२, इस क्रम से व्रत करना चाहिए । इस व्रत को बारह भेद तप व्रत कहते हैं ।
बीज पूरत तप व्रत भाद्र सूदी को उपवास करके दो दिन एकाशन करना उसके बाद फिर दो दिन एकाशन करके अष्टमी को उपवास करना चाहिए । फिर दो दिन आहार करके एकादशी को उपवास करना चाहिए। द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी को उपवास करके पूर्णिमा को एकाशन करना। उपनास की रात्रि को जागरण कर रात्रि धर्मध्यान पूर्वक व्यतीत करनी चाहिए।
बारह बिजोरा व्रत - प्रत्येक महिने की सुदी व वदी की द्वादशी को प्रोषधोपवास करना ऐसे बारह महिने करना चाहिए अर्थात् वर्ष में २४ उपवास करना यह एक वर्ष करना । उसका प्रारम्भ कभी भी कर सकते हैं । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन नहीं किया तो व्रत फिर से एक बार करना चाहिए।
-जिनव्रत विधान संग्रह बसरबलगद व्रत विधि व प्रत कथा प्राषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन की तीनों अष्टान्हिका में से कोई एक अष्टान्हिका से प्रारम्भ करे, स्नान कर, शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजाभिषेक का सामान अपने हाथों