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व्रत कथा कोष
वह सेठानी उस मृत्युञ्जयकुमार को साथ में लेकर गई और जिनदत्त सेठ को दिखा दिया और कहा यही मेरा पुत्र है, तब उस सेठ ने अपनी कन्या वनमाला का विवाह मृत्युञ्जय के साथ में कर दिया, और उसको शय्याग्रह में भेज दिया ।
वनमाला ने वहां जाकर मृत्युञ्जय को खाने के पदार्थ दिये तब मृत्युञ्जय कहने लगा कि हे प्यारी मैं रात को भोजन नहीं करता, तब उसने पान का बीड़ा दिया, और अपने अंग पर से कंचुकी निकालकर खटिया ( पलंग ) पर रखकर बाहर चली गयी, तब मृत्युञ्जय ने कंचुकी पर चूने से अपना नाम लिखकर अपनी जगह सुशर्मा वहाँ रखकर, मृत्युञ्जय चला गया, इतने में वनमाला वहां प्रा गई, देखा तो अपना पति कुरूप देखा, तब मैं पानी लेकर आती हूं ऐसा कहकर एक कमरे में बैठ गई, द्वार को बंद करके प्रातः काल होने पर सबने उस सुशर्मा कुरूपी को देखा, सबने मिलकर उसकी खूब मजाक उड़ाई और कहने लगे कि हमारी कन्या को ऐसा कुरूप वर मिला है, यह बहुत खराब हुआ है, लोग अनेक प्रकार की चेष्टा करने लगे, तब उसको बहुत खराब लगा, और वो वहां से चला गया, रात्रि को हुई घटना को अपने माता-पिता को बताया, यह सब सुनकर अपने कपटाचार से अपना अपमान हुप्रा है, ऐसा समझकर नगर में वापस लौट आये ।
इधर वह मृत्युञ्जय कुमार घूमता- घूमता रत्नसंचयपुर नगर के उद्यान में पहुंचा, वहां एक ऐसी घटना घटी कि उस रत्नसंचयपुर नगरी का राजा, सिंहरथ की दो कन्या थी, उनका नाम विशालनेत्रा व कुवलयनेत्री था, दोनों कन्याएं जब युवा अवस्था में आई तब राजा को कन्याओं के विवाह की चिन्ता रहने लगी, एक दिन एक अवधिज्ञान सम्पन्न मुनिराज से राजा ने पूछा कि हे गुरुदेव मेरी कन्याओं का विवाह कब होगा, तब मुनिराज कहने लगे कि हे राजन, तुम्हारे नगर के उद्यान में चित्रकूट जिनमन्दिर का दरवाजा जो कोई खोलेगा, वो ही तुम्हारी कन्या का वर होगा, क्योंकि दरवाजा बहुत दिनों से बन्द है, सुनकर राजा ने दो सेवकों को मन्दिर के सामने नियुक्त कर रखा था ।
इधर मृत्युञ्जय मामा के साथ में उद्यान के सरोवर पर स्नान करके हाथों