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व्रत कथा कोष
चित्त नहीं लगेगा और संसार में बहुत कम समय रहेगा। बाद में राजा घर पाया और उसे वैराग्य हो गया । उसने पुत्र सुकौशल को राज्य का भार देकर दीक्षा ली।
सुकौशल राज्य करने लगा, वह विद्वान था । फिर भी राजनीति की कुटिलता उसे मालुम नहीं थी। उसका भण्डारी मतिसागर बड़ा ही चालाक था । राजा का ध्यान राज्य की अोर नहीं है- ऐसा जानकर उसने श्रुतसागर मन्त्री से कहा तुम राजा को कैद में डालकर राज्य अपने हाथ में ले लो। तुम राजा बनो, मैं मन्त्री बनगा ।
यह बात मतिसागर के लड़के को ज्ञात हुई। वह राजा का बचपन का दोस्त था। उसने सुकौशल को सतर्क किया । तब राजा ने मतिसागर को अपने अधिकार की शिक्षा दी और फिर मन्त्री को राज्य देकर आप पिताजी के पास जाकर जिनदीक्षा ली।
मतिसागर दुःखी हुमा, वह वहीं मर कर उसी वन में सिंह हुआ।
सुकौशल मुनि होकर कठोर तप करने लगे । तब उस सिंह ने पूर्वभव के वैर के कारण उसके शरीर को त्रास दिया। वह सुकौशल उपसर्ग सहन कर शुदल ध्यान में लीन हो गये । सिंह अपने कृत्यों पर पछताकर भाग गया। मुनिमहाराज को अन्त में केवलज्ञान प्राप्त हुआ और मोक्ष गये । वह सिंह दुःख पाता हुआ मरकर घोर नरक में गया।
उस दरिद्र कन्या ने सिर्फ मौन एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया जिससे राजकुमारी हुई और अन्त में वह मोक्ष गयी । इसलिए प्रत्येक जीव को मौन व्रत पालन करना इष्ट है । इसी में प्रात्मा का हित है ।
मंगलत्रयोदशी व्रत कथा आश्विन कृष्ण १२ के दिन शुद्ध वस्त्र पहन कर जिन मन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, विमलनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा यक्षयक्षणी सहित स्थापन कर भगवान का पंचामृताभिषेक करे, फिर अष्टद्रव्य से आदिनाथ से लगाकर विमलनाथ तीर्थकर तक की पूजा करे, श्रुत व गुरु की, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे, क्षेत्रपाल का तैलाभिषेक करे, सिन्दूर