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व्रत कथा कोष
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भावना द्वात्रिंशतिका व्रत
इस व्रत के कुल उपवास ३२ हैं । चतुर्दशी के १६, द्वादशी के १२, चतुर्थी के चार इस प्रकार ३२ उपवास करना यह व्रत प्राठ महीने में पूरा होता है । प्रत्येक उपवास प्रौषधपूर्वक करना चाहिए । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । यदि उद्यापन नहीं किया तो व्रत दुगना करना चाहिए ।
भाद्रवनहनिष्कीड़ित व्रत
यह व्रत २०० दिन में पूरा होता है इसमें १७५ उपवास श्रौर २५ पारणे होते हैं । पारणे के दिन एकाशन करना चाहिए । इसका क्रम निम्न प्रकार है ।
एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पाररणा, पांच उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारगा सात उपवास एक पारणा, प्राठ उपवास एक पारणा, नव उपवास एक पारणा, दस उपवास एक पाररणा, ग्यारह उपवास एक पारणा, बारह उपवास एक पारणा, तेरह उपवास एक पारणा करके फिर से तेरह उपवास एक पारणा, बारह उपवास एक पाररणा, ग्यारह उपवास एक पारणा, दस उपवास एक पारणा, नव उपवास एक पारणा, आठ उपवास एक पाररणा, सात उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पाररणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, एक उपवास एक पाररणा, इस प्रकार बिना खण्ड क्रम ये उपवास करना चाहिए ।
- जैन व्रत विधान संग्रह
भाद्रपद पर्व व्रत
मनुष्यों में जैसे राजा श्रेष्ठ होता है वैसे सब महिनों में भाद्रपद महिना श्रेष्ठ माना जाता है । मल्लिनाथ पुराण में कहा है कि
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" ग्रहो भाद्रपदाख्योऽयं मासेऽनेक व्रत करः । ध्येऽन्तमासानां नरेन्द्र व्रत " |
धर्म हेतु
इस पर्व का प्रारम्भ भाद्र सुदी पंचमी से शुरू होता है और भाद्र सुदि तुर्दशी को पूरा होता है, इसको ही पर्युषण पर्व कहते हैं । पर्युषण के प्रथम दिन