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व्रत कथा कोष
"ॐ ह्रां ह्रीं सर्वविघ्ननिवारकाय श्री शान्तिनाथस्वामिने नमः स्वाहा । इस मन्त्र का जाप करना होगा । कषाय, राग-द्व ेष-मोह आदि विकारों का भी त्याग करना अनिवार्य है, इस व्रत को इस प्रकार करना चाहिए जिससे किसी भी प्रकार दोष नहीं लगे । श्रात्म-परिणामों को निर्मल और विशुद्ध रखने का प्रयास करना चाहिए । इस व्रत को अवधि भी सात वर्ष है, पश्चात् उद्यापन कर छोड़ देना चाहिए ।
मुकुट सप्तमी व्रत
श्रावण सुदि सप्तमी को मुकुट सप्तमी कहते हैं, और महिने की सप्तमी को मुकुट सप्तमी नहीं कहते हैं । इस व्रत के दिन प्रादिनाथ, पार्श्वनाथ और मुनिसुव्रत. नाथ इनकी पूजन करके जयमाला उनकी आशीर्वाद है ऐसा समझकर गले डालनी । इस सप्तमी को शीर्ष मुकुट सप्तमी कहते हैं । सप्तमी को प्रोषधोपवास करना चाहिए । यह व्रत क्रम से सात वर्ष करना चाहिये । बाद में उद्यापन करना चाहिये यदि उद्यापन की शक्ति नहीं हो तो व्रत दूना करना चाहिये ।
सप्तमी को प्रातःकाल सामायिक के बाद नित्य क्रिया से मुक्त हो पूजा-पाठ अभिषेक स्वाध्याय आदि क्रिया करनी चाहिये । पूजा के बाद जयमाला गले में पहननी चाहिए । दोपहर को सामायिक करनी चाहिये । और चिन्तामणी पार्श्वनाथ का स्तोत्र बोलना चाहिए। शाम को सामायिक आत्मचिंतन वगैरह करना । इसके बाद ॐ ह्रीं श्रीं मुनिसुव्रतनाथाय नमः, ॐ ह्रीं श्रीं पार्श्वनाथाय नमः इन दोनों मन्त्रों का अलग अलग जाप करना । रात को एक बार करना ।
इस व्रत के उद्यापन के लिए सात कोष्ठक ( कोठे) का एक वलयाकार मण्डल निकाले अथवा नवीन मटकी को साफ करके सुगन्धित द्रव्य से लेप करे फिर बड़ी ऊपर रखे, उसके ऊपर मण्डल निकाले । उसके बाद जल यात्रा, अभिषेक, सकलीकररण जिनपूजा, अंगन्यास, मंगलात्मक स्वस्ति विधान करके चतुर्विंशति पूजा करे | उद्यापन के समय मन्दिर में सात उपकरण, सात शास्त्र, चांदवा, मण्डल व बर्तन देना, श्रावक मुनि को आहार देना । यह उद्यापन श्रावण सुदी अष्टमी को करना चाहिए । इसकी कथा इस प्रकार है ।