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व्रत कथा कोष
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____ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं वृषभादि चतुर्विशति तीर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा ।
___ इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, अंत में एक थाली में नारियल सहित अर्घ्य हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर मंगल आरती उतारे, अर्घ्य प्रभु को चढ़ा देवे, ब्रह्मचर्य पालन करे, उस दिन उपवास करे, सत्पात्रों को आहारदान देवे, इसी क्रम से चार महिने व्रत को करे। प्रतिदिन पजा करके अष्टमी चतुर्दशी को उपवास करे, दूसरे टाइम भोजन करे, आगे आने वाली अष्टान्हिका में उद्यापन करे, उस समय चौबीस तीर्थंकरों का विधान करे, २४ नैवेद्य चढ़ावे, चतुर्विध संघ को दान देवे । इस व्रत की कथा में राजा श्रेणिक और रानी चेलना का चरित्र पढ़े ।
___ भावना पच्चीसी व्रत इस व्रत का उद्देश्य द्वादशांग जिनवाणी की आराधना करना है । सम्यग्ज्ञान को प्राप्ति करना ही उसका फल है । सम्यक्त्व को विशुद्धि इस व्रत से होती है। सम्यक्त्व के २५ दोष बताये हैं । वह इस प्रकार हैं।
तीन मूढता (गुरु मूढ़ता, देव मूढ़ता, लोक मूढ़ता) ६ अनायतन (कुदेव, कुधर्म, कुगुरु व उनके सेवक) आठ मद (कुल, जाति, अधिकार, रूप, बल, धन, तप व ज्ञान) और शंकादि पाठ दोष ऐसे यह २५ दोष हैं। उन दोषों के नाश को (क्षालनार्थ) यह व्रत करना चाहिए। उसका क्रम इस प्रकार है ।
तृतीया के तीन उपवास तीन मढ़ता दूर करने को षष्ठी के ६ उपवास अनायतन दूर करने को, अष्टमी के आठ उपवास आठ मद दूर करने को और शंकादि आठ दोष दूर करने को प्रतिपदा का एक, द्वितीया के दो, पञ्चमी के पांच ऐसे आठ उपवास करना । यह महान व्रत है, इन उपवासों की शुरूपात करने के लिए निश्चित महिना नहीं बताया है।
फिर भी भाद्रपद महिने से शुरू करने हैं। इसका प्रारम्भ अष्टमी से करना चाहिए । व्रत शुरू करने से पहले ४ महिने का ब्रह्मचर्य व्रत लेना चाहिए । इस व्रत