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व्रत कथा कोष
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में लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीम प्रदक्षिणा लगाते हुये भगवान को नमस्कार करे, ईर्यापथ शुद्धि क्रिया करके भगवान को अभिषेक पीठ पर स्थापन करके पंचामृत अभिषेक करे, अष्टद्रव्य से भगवान की पूजा करके, ॐ ह्रीं परमब्रह्मणे अनंतानंत ज्ञान शक्तये अर्हत्परमेष्ठिने नमः स्वाहा. १०८ बार पुष्प लेकर जप करे जिन सहस्रनाम पढ़े, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे ।
यह व्रत कथा पढ़े, शास्त्र, गुरु की पूजा करना, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल इमका भी इनके योग्यतानुसार अादि देकर सम्मान करना, एक महाअर्घ्य बमाकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाते हुये मंगल आरती उतारे, अर्घ्य को भगवान के आगे चढ़ा देवे । इसी क्रम से चार महिनों तक नित्य पूजा करनी चाहिये, व्रत के पूर्ण होने पर अर्हत्परमेष्ठि की महाभिषेक पूजा करता हुआ प्रत का उद्यापन करे, उस समय बारह बांस का छोटा करंड मंगवाकर उत्तम २ वस्तु, मिठाई भरकर करंडों को कागज
आदि से बंद कर देवे, उसमें बारह प्रकार का धान्य भी भरे, और क्रमशः एक-एक पर अलग २ कलश रखकर उन कलशों में दूध और धी भरे, अन्दर सोमे के पुष्प डाले, कलश सूत के धागे से लपेटे हुए रहना चाहिए, कलशों को गंध, हल्दी; अक्षत लगाना, करंड कलशों के सामने बहुत प्रकार की मिठाई रखना चाहिये, एक मन चांवल को बारह जगह अलग २ रखकर उसके ऊपर भी एक कलश रखे, भगवान जिनेन्द्रदेव की अभिषेक पूर्वक पूजा करता हुआ, वायना करंड को प्रदान करे, एक देव को एक गुरु को एक शास्त्र एक आयिका को एक पद्मावती, एक ज्वालामालिनी, एक जलदेवता को अर्पण करे, सामने रखी हुई मिठाई भी अर्पण करें, कथा सुनाने वाले गृहस्थाचार्य (पंडित) को एक देवे, चार सौभाग्यवती स्त्रियों को देवे, इस प्रकार बारह वायना देवे।
कथा
एक बार राजगृही नगर में रहने वाला राजा श्रीणिक का राजश्रेष्ठि भगवान महावीर के समवशरण में जाकर धर्मोपदेश सुनने के लिए मनुष्य के कोठे में बैठ गया कुछ समय वाणी को सुनने के बाद सेठ जयसेन और धर्मपत्नी जयसेना सहित हाथ जोड़कर नमस्कार करता हुआ, गौतम गणधर से कहने लगा कि हे गुरों