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व्रत कथा कोष
परमेष्ठी विधान कर महाभिषेक मुनि प्रायिका को श्राहार दान
यह व्रत पूर्व के भव में पद्मरथ व पद्मावती ने किया था और उद्यापन किया था । जिससे वे श्रीपाल व मदनावती होकर जन्मे । वे सब सांसारिक सुख भोग कर स्वर्ग में देव हुये ।
करे । १०८ कमल पुण्य बहाकर अभिषेक करे । । सत्पात्र को दान दे ।
यह दृष्टांत व ऊपर लिखी कथा श्री शंखगुप्ताचार्य के मुख से सुनकर सब को बहुत ही खुशी हुई। फिर राजा ने मुनिमहाराज की वन्दना की, मुनिमहाराज जंगल में चले गये ।
इधर शंखपाल राजा ने कालानुसार यह व्रत किया और उद्यापन किया । श्रीर वैराग्य होने से दीक्षा ली, समाधिपूर्वक इनका मरण हुआ जिससे सौधर्म स्वर्ग में देव हुये ।
अथ पंच पांडव व्रत कथा
व्रत विधि :- सब विधि पहले के समान करे अन्तर सिर्फ इतना है कि शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकाशन करे, और पंचमी को उपवास करें । पीठ पर पंचपरमेष्ठी की प्रतिमा को स्थापित कर पंचामृत अभिषेक करे ।
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जाप :- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रः श्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा” इसका १०८ बार पुष्पों से जाप करे ।
इस प्रकार ५ बार व्रत करने के बाद उद्यापन करे पंचपरमेष्ठी विधान करके महाभिषेक करे । मन्दिर में ५ घण्टी, ५ कलश, घण्टा, तोरण, ध्वज, चामर वगैरह उपकररण रखे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है उसमें अंग देश है उसी में शुण्डालपुर नामक सुन्दर नगर है उसमें मेघकुमार नामक एक राजा रहता था । उसकी पटरानी मनोरमा थी । उसी प्रकार सोमसेन मन्त्रि उसकी पत्नी सोमदत्ता थी उनको सोमदत सोमभूति सोमिल ऐसे तीन पुत्र थे उनकी क्रम से हेमश्री मित्रश्री व नागश्री ऐसी पत्नियां थीं । इस प्रकार पूरे परिवार सहित मेघकुमार रहता था ।