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व्रत कथा कोष
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रानी के साथ लिया । सब लोग वन्दना करके अपने नगर में वापस आये। व्रत का पालन विधिपूर्वक किया। इस व्रत के प्रभाव से समाधिपूर्वक उनका मरण हुआ और अनुक्रम से स्वर्गसुख भोगते हुए मोक्ष गये।
अथ पंचमहाक्षेत्रपाल व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करे, अन्तर सिर्फ इतना है कि आश्विन महिने के पहले शनिवार को एकाशन करे और रविवार को उपवास करे, क्षेत्रपाल की पूजा करते समय एक पाटे पर पांच पान मांडे और उस पर अष्ट द्रव्य व गुड़ मिश्रित पांच लड्डू रखे । पांच क्षेत्रपाल की क्रम से अर्चना करना । पांच पकवान का चरू बनावे ।
ॐ प्रां कों ह्रीं हूं फट् पंचमहाक्षेत्रपाल देवेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ पुष्प से जाप करे । पांच रविवार व्रत करके अन्त में कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन करे । आहारदान देकर उन्हें योग्य उपकरण दे । पांच दम्पति को भोजन करावे, उन्हें वस्त्र आदि दे । चावल, गंध, फल, नारियल, हल्दी, कुंकु उससे प्रोटी भरे ।
कथा
मिथिला नगरी में जिनराय नामक एक राजा राज्य करता था । उसकी विदेही नामक पट्टरानी थी, उसको क्रनक महाराज नामक एक भाई था, उसकी स्त्री कनकवती थी। इनके अलावा मन्त्री, पुरोहित, राजश्रेष्ठी आदि परिवार था।
एक दिन नगर के उद्यान में श्री कनकप्रभ नामक मुनिमहाराज अपने संघ सहित पाये । नगर के लोग संघ सहित मुनि के दर्शन को गये। मुनि की प्रदक्षिणा लगाकर वन्दना की। फिर धर्मोपदेश सुनकर राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि हे दयासिंधो स्वामिन्! आज मुझे सुख का कारण ऐसा कोई व्रत कहो । तब महाराज जी ने कहा हे भव्योत्तम राजन् श्री पंचमहाक्षेत्रपाल व्रत का पालन करो। राजा नगर में वन्दना कर वापस आया और इस व्रत का पालन किया और उद्यापन किया। प्रायु पूर्ण होने पर स्वर्ग गये वहां पर चिरकाल सुख भोगा।