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व्रत कथा कोष
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इन पांचों पांडवों ने अनेक राजऐश्वर्य भोगकर सांसारिक विषयों से वैराग्य उत्पन्न होने से वन में जाकर एक मुनिश्वर के पास जिन दीक्षा ली। धर्म, भीम व अर्जुन तो घोर उपसर्ग सहन कर अन्त में शुक्ल ध्यान के बल से सब कर्मों का क्षय कर मोक्ष गये और नकुल व सहदेव ये दोनों तपश्चरण करके सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र हुये । ऐसी इस व्रत की महिमा है ।
अथ पद्मदत चक्रवति व्रत कथा व्रत विधि :-फाल्गुन शु० ७ के दिन एकाशन करे और अष्टमी के दिन सुबह शुद्ध कपड़े पहन कर प्रष्ट द्रव्य लेकर मन्दिर में जाये । दर्शन आदि कर पीठ पर नन्दीश्वर बिम्ब व तोर्थंकर (भूतकाल के) की प्रतिमा यक्षयक्षी सहित स्थापित करे । फिर भगवान के सामने स्वास्तिक निकाल कर उस पर नव पत्ते रखकर उस पर प्रष्ट द्रव्य रखे । निर्वाण से लेकर अंगीर तक भूतकाल तीर्थंकर की पूजा करे ।।
आप :-ॐ ह्रीं अहं अंगिर तीर्थ कराय यक्षयक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का जाप १०८ बार पुष्पों से करे । णमोकार मन्त्र का भी जाप करे । सहस्र नाम पढ़े । यह व्रत कथा पढ़े आरती करे उस दिन उपवास करे ।
इस प्रकार नव तिथि पूर्ण होने पर कार्तिक अष्टान्हिका में इस व्रत का उद्यापन करे। उस समय अंगिर तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे । चार प्रकार का व करुणा दान दे । मन्दिर में उपकरण आदि रखे ।
इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है, उसमें सुकच्छ देश है, उसमें श्रीपुर नामक नगर है, वहां प्रजापाल नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में पट्ट रानी, पुरोहित मन्त्री, सेठ आदि थे।
एक दिन मुनिमहाराज चर्या के निमित्त राजवाड़ा में आये । उन्हें नवधाभक्तिपूर्वक प्राहार दिया। फिर उन महाराज को एक पाटे पर बैठाया । राजा मे विनती कर कोई एक व्रत मांगा महाराज ने पद्मदत चक्रवर्ती यह व्रत करने को कहा और उसकी सब विधि बतायी। समयनुसार उस व्रत का पालन किया और उद्यापन किया ।