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व्रत कथा कोष
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जैन कथा संग्रह में इस व्रत के ६६ उपवास बताये हैं उसकी विधि
(१) आश्विन सुदी ६, १३, व वदि ६, ११, १४, ऐसे ५ उपवास करना । इन उपवासों के नाम क्रम से सूर्यप्रभा, चंद्रप्रभा, कुमारसंभव, षडशीती पुष्पोत्तर, ऐसे नाम हैं।
(२) कार्तिक महिने की सुदी १२ व वदि १२ को २ उपवास करना इसके नाम नन्दीश्वर प्रतिहार्य ऐसे नाम हैं ।
(३) मार्गशीर्ष सुदी ४, ११, और वदि ३, १२ ऐसे तीन उपवास करना इसके नाम जितेन्द्रय, पंक्ति मानव व सूर्य ऐसे नाम हैं ।
(४) पौष सुदी ५, ११, और वदि २, ४, ३० ऐसे ५ उपवास करना इसके नाम पराक्रम, जयपृथ, स्वयंप्रभ, रत्नाप्रभा ऐसे नाम हैं।
(५) माघ सुदि ४, ७, ११ व वदि ३, २, १४ ऐसे ५ उपवास करना शील पंचशीति में दो पहले दो उपवास के बाकी उपवास के नाम दिये नहीं हैं।
(६) फाल्गुन सुदी ४, ११, व वदि ३, ८, १४ ऐसे पांच उपवास करना।
(७) चैत्र सुदि १, ५, ८, ११, व वदि ३, ८, १४, ऐसे सात उपवास करना।
(८) वैशाख सुदि १, ५, ८, ११, वदि ३, ८, १४, सात उपवास करना । (8) ज्येष्ठ सुदी ५, ८, १४, वदि ५, ८ ऐसे पांच उपवास करना। (१०) आषाढ़ सुदि १, ८, १४, वदि १, ५, ८, १४, आठ उपवास करना ।
(११) श्रावण सुदि ३, ५, ८, १४ वदि ५, ८, १४, ऐसे सात उपवास करना।
(१२) भाद्रपद सुदी ५, ११, १४, और वदि ५, ८, १४ ऐसे सात उपवास करना।
इस प्रकार (५+२+३+५+६+५+७+७+५+८+७+६) = ६६ उपवास करना व्रत पूर्ण हो तो उद्यापन करना चाहिए।
ये ऊपर दी हुई सभी विधियां बृहत्पल्य विधान की हैं । इस व्रत में त्रिकाल पंचनमस्कार मंत्र का जाप करना । इसका एक भेद लघुपल्यविधान व्रत है।