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व्रत कथा कोष
ऐसा क्रम से जयद्रव्य, स्वयंप्रभ, रत्नप्रभ, अजित व पराक्रम ऐसा है । माघ सुदी ७, ८, १० और वदि ४, ७, १४ ऐसे छः उपवास करना । इसके नाम क्रम से पंचातिशय, सूर्यप्रभ, वीर्यप्रभ, सम्यक्त्व, चतुर्मुख व सत्यशील ऐसे हैं ।
फाल्गुन सुदी १,१११५ और वदी ५ व ६ ऐसे सात उपवास करना । क्रम से नाम - चन्द्रप्रभ, विमानभद्र, अपराजित, प्रजावतीव, समश्री । चैत्र सुदी ७ और वदि १, २, ४, ६, ८ और ११ ऐसे पांच उपवास करना । उसके नाम क्रम से सर्वार्थसिद्धी, सूर्यप्रभ, त्रिलोकगुरु, सज्ञान, त्रिरत्न, महारथ त्रिभुवन प्रकाश ऐसे हैं ।
वैशाख सुदी २, ५, ६ व १३ और वदी ४, १० व १२ ऐसे सात उपवास करना । इसके नाम क्रम से शीतवात, मनोज, नन्दीश्वर, त्रिभुवनवल्लभ, संजय, गुणसागर ऐसे हैं ।
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ज्येष्ठ सुदी८, १०, १५ और वदि ७, १० ऐसे ५ उपवास करना । इसके नाम ज्ञानभावक, ज्ञानदीपिका, चंद्रकान्ति, दुर्जय, जितारि ऐसे हैं । आषाढ़ सुदी८, १०, १५ और वदि १०, १३, १४, ३० ऐसे ७ उपवास करना । इसे क्रम से लक्ष्मण पंक्ति, मेरूपंक्ति, जितमात्सर्य, जितशत्रु, गंधर्व, गंधर्व, गंधर्व, ऐसे हैं ।
श्रावण सुदी ३, १०, १३, १५ और वदि ४, ८, १४ ऐसे सात उपवास करना और उसका नाम क्रम से लक्ष्मण पंक्ति, चन्द्रकीर्ति, जितक्रोध, जिनहर्ष जितका - माक्ष, धर्मराज और चतुर्मुख ऐसे हैं ।
भाद्रपद सुदी ५, ६, ७, ११, १२, १५ और वदी १५, २, ६, ७, १२ ऐसे १० उपवास करना । उसके नाम क्रम से रत्नावली, त्रिलोक गुरु, सर्वार्थसिद्धी, सर्वासिद्धी, सर्वार्थसिद्धी, निर्वारणसाधक, भद्रक, विमान पंक्ति, आनंद धातुरसागर ऐसे हैं । इस प्रकार ७१ उपवास होते हैं ।